Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh

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Page 186
________________ . .. . उत्तरध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३४) तेइ दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १३७ ॥ कुंथुपिवीलिउहंसा, उक्ललुदेहिया तहा । । तणहारकट्ठहारा य, मालुगपत्तहारगा ॥ ३८ ॥ कापासटुिंमि जायंति, दुगा तउसमिंजगा । सदावरी य गुम्मी य, बोधव्वा इंदगाइया ॥ ३९ ॥ इंदगावगमाईया, गहा एवमायओ। ........ लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ ४० ॥ संतई पाप नाईया, अपज्जवसिया त्रि य । .. ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ ४१ ।। एगूणवन्नहारत्ता, उक्कासेण वियाहिया । तेइंदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ४२ ॥ संखिज्जकालमुक्कासं, अंतोमुहुत्त जहन्नग । तेइंदियकायठिई, त. काय तु अमुचओं ॥ ४३ ॥ अणंतकालमुक्कासं, अंतोमुहुत्तं जहन्नग । तेइंदियजीवाण, अंतरं च वियाहिया ॥ ४४ ।। एएसिं वण्णओ चेव. गधओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ४५ ॥ चउरिदिया उ जे जीवा. दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ ४६ ।। अंधिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीडपयंगे य, टिंकुणे कंकणे तहा ॥ १४७ ।।

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