Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh

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Page 179
________________ १६४ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३६) अट्ठजोयणबाहुल्ला, सा मज्झम्मि वियाहिया । परिहायंती चरिमते, मच्छिपत्ताउ तणुयरी ।। ६० ।। अज्जुणसुवण्णगमई, सा पुढवी निम्मला सहावेण । उत्ताणगछत्तगसठिया य, भणिया निणवरेहिं ॥ ६१ ॥ संखककुंदस कासा, पंडुरो निम्मला सुहा । सीयाए जोयणे तत्तो, लायतो उ वियाहिओ ।। ६२ ।। जोयणस्स उ जो तत्थ, कासो उवरिमा भवे । तस्स कोसस्स छब्भाए, सिद्धाणागाहणा भवे ।। ६३ ।। तत्थ सिद्धा महाभागा, लोगग्गम्मि पइट्ठिया । भवपपंचओ मुक्का, सिद्धिं वरगई गया ॥ ६४ ।। उस्सेहो जस्स जो हाइ, भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणी तत्तो य, सिद्धाणागाहणा भवे ॥ ६५ ।। एगत्तेण साईया, अपज्जवसिया वि य । पुहुत्तेण अणाइया, अपज्जवसिया वि य ।। ६६ ।। अरूविणेा जीवघणा, नाणदसणसन्निया । अउल सुह सपन्ना, उवमा जस्स नत्थि उ ॥ ६७ ॥ लोगेगदेसे ते सव्वे, नाणदंसणसन्निया । संसारपारनित्थिण्णा, सिद्धिं वरगई गया ॥ ६८ ।। ससारत्था उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया । तसा य थावरा चेव, थावरा तिविहा तहिं ॥६९ ॥ पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई । इच्चेव थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ।। ७० ॥ TAH

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