Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 177
________________ १६२ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३६) फासओ लहुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥ ३८ ॥ फासओ सीयए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ वि य ।। ३९ ।। फासओ उण्हए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥ ४० ॥ फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥ ४१ ॥ फासओ लुक्खए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ वि य ।। ४२ ।। परिमंडलस ठाणे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओ विय ॥ ४३ ॥ ठाणओ भवे वट्टे, भइए से उ वण्णओं । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओ विय ॥ ४४ ॥ ठाणओ भवे तसे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओ विय ॥ ४५ ॥ स ठाणओ भवे चउर से, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओ विय ॥ ४६ ॥ जे आययस ठाणे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओ विय ॥ ४७ ॥ एसा अजीवविभत्ती, समासेण वियाहिया । इतो जीवविभत्ति, वुच्छामि अणुपुव्वसा ॥ ४८ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200