Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययनं ३१) १३५ दंडाण गारवाण' च, सल्लाण च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निच्चं, से न अच्छइ मडले ।। ४ ।। दिन्वे य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे ।। जे भिक्खू सहई सम्मं, से न अच्छइ मडले ॥ ५ ॥ विगहाकसायसन्नाण, झाणाण च दुयं तहा । जे भिक्खू वज्जई निच्च. से न अच्छइ मडले ।। ६ ।। वएसु इदियत्थेसु, समिईसु किरियासु य ।। जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छई मडले ।। ७ ।। लेसासु छसु काएसु, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मडले ॥ ८ ।। पिंडोग्गहपडिमासु, भयद्वाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू जयई निच, से न अच्छइ मडले ।। ९ ।। मदेसु ब भगुत्तीसु, भिक्खुधम्मम्मि दसविहे । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मडले ।। १० ॥ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूण पडिमासु य । जे भिक्खू जगई निच्च, से न अच्छइ मडले ।। ११ ।। किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मडले ।। १२ ।। गाहासोलसएहि, तहा असं जमम्मि य ।। जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मडले ।। १३ ।। ब भमि नायज्झयणेसु, ठाणेसु अ समाहिए । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मडले ।। १४ ।।