Book Title: Uttam Charitra Kumar Ras Author(s): Jinharshsuri Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 7
________________ ) धर्मकला भावी नहिं, तो मूरखना राय ॥१॥धव र सर्व विकला कला, धर्मकला शिरदार ॥ धर्मकला विण मानवी, पशुतणे अवतार ॥ ५ ॥ रात दिवस धर्म रमे, उत्तमचरित्र कुमार ॥ सुखदायी सदु लो कम, यश विस्तया अपार ॥३॥ एक दिन मनमा चिंतवे,, हवे थयो जुवान ॥ बाप तणुं धन नोग, एम तो न लढुं मान ॥ ४ ॥ बापतगुं धन बालप ए, खाता खोट न कां ॥ तरुणपणे जो नोगवे, तो पुरुषातन जाय ॥ ५ ॥ सोल वरस वोल्यां पडे, न करे जो अमास ॥ बाप तणीपाशा करे,धिक जनमा रो तास ॥ ६ ॥ सिंह सिंचाणो शा पुरुष, न करे प रनी आश ॥ निज जुज खाट्युं खायें,तो लहियें जश वास ॥ ७ ॥ जण न कहायो जगतमां, बालपणे य शवास ॥ पशु दूधा ते बापडा, पडिया खावे घास ॥ ७ ॥ करुं परीक्षा कर्मनी, जोनं देश विदेश ॥ ख डले निशि चालियो, धरतो हरख विशेष ॥ ५ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ माझं मन मोह्यु रे वप्रानंदा रे॥ ए देशी॥ ॥ कर्म परिक्षा रे करण कुमर चल्यो रे, धरतो म नमा उत्साह ॥ साथें लीधो रे नाग्यसखायीयो रे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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