Book Title: Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Jinharshsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 38
________________ (३५ ) पण सुणवां नहीं, करवी तो कथा वैरागो रे ॥ ७॥ ॥ सु०॥ वात न करवी पुरुषगुं, चित्राम पुरुष न विलोकुं रे॥ नाटक ख्याल जोन नहीं, जातुं चंचल चित्त रोकुं रे ॥ ए ॥ सु०॥ एहवी ए लीधी बाखडी, पियु न मले तिहां लगें पालुं रे ॥ ध्यान करुं नव कार, पूजा करी पाप पखालुं रे ॥ १०॥ सु०॥ अन्य दिवस धीवर सहू, साथै करि उत्तम कुमारो रे॥ कांहिक काम वशे मती, थाव्या मोटपढ्नी पा रो रे॥ ११॥ सु०॥ नरवर्मराय मंमावियो, पुत्री कारण धावासो रे॥ अति मनोहर सात नूमियो, दीनां होय नन्नासो रे ॥ १२ ॥ सु॥ पुरनी शोना जोवतो, तिहां थाव्यो कुमर सुजाण रे॥ कामका रोगर तिहां करे, निजशास्त्र सहूना जाण रे ॥१३॥ ॥ सु० ॥ गम गम ते वीसरे, खोटां घर किहां च गावे रे ॥ ढाल थइ ए चादमी, जिनहर्ष कुमार शीखावे रे ॥ १४ ॥ सु० ॥ सर्वगाथा ॥ १० ॥ ॥दोहा॥ ॥ कुमर वास्तुविद्या विष,पण न मले अहंकार॥ सूत्रधारने शीखवे, सघलोही अधिकार ॥ १ ॥ चम त्कार चित्त पामिया,चिंते सद्ध सूत्रधार ॥ ए नर दीसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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