Book Title: Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Jinharshsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 32
________________ ( २५) तल संग्रहो, गुण था पाषाण ॥॥ मरवाने उ द्यत थई, वृक्षा कहे तेणि वार ॥ म मर म मर मूरख म मर,सांनल कहुँ विचार ॥ ३ ॥ फांसी विष जहण करे, पाणी अग्निप्रवेश ॥ गिरितरुवरथीप डी मरे, कुमरण कहियें एस ॥४॥ एह मरणथी नवो नवें, लहिये मरण यह ॥ पुण्ये मलशे जी वतो, तुज प्रीतम सुसनेह ॥ ५ ॥ ॥ ढाल बारमी ॥ नणदल हे मोहन मुदरी ले ग यो।ए देशी ॥ ॥शेठ कहे यावी करी,रूडां वयण रसाल ॥हे व निता सुण वातडी,तुंम पड न पडःखजान ॥१॥रम णीहे मान वयण तुं माहरूं,महिलं वयण तुं पाल पर ॥एमांकणी॥ मित्र अमूलक माहरो, उत्तमचरित्र कु मार ॥ ते मुजने नवि वीतरे हो,साले हियडा मकार ॥शार॥ पुण्य दुवे तो पामियें, मन मान्या मित्त ॥ नयणवयण रलियामणा हो,पाले अविहड प्रीत ॥३ पर॥ खाणां पीणां खेलणां,न गमे मीठा नाद॥वात विगत गुणगोठडी दो, लागे सह निःस्वाद ॥धार॥ दुःख म कर तुं गोरडी, फुःख कीधे थाय ॥ मूते जीवे नही हो, जो बरसां सो थाय ॥ ५॥ २० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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