Book Title: Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Jinharshsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ (२७) ग्यो विरह अपार ॥ ७ ॥१०॥रोवे कण जो वे दश दिशे रे, प ण थाये चेत ॥ फूरे यूथ ट ली मृगली परें रे, पियु तोडयुं कांइ हेत ॥ ७ ॥ प० ॥ प्राण दोशे माहरां दवे प्रादुणां रे, तुजविण सुगुणा नाह ॥ ए दुःख में खमणुं जाये नहीं रे, विरह लगायो दाह ॥ ए ॥ ५० ॥ में चिंतामणि रत न लडं हतुं रे, राख्युं करी जतन ॥ पण बाजे नहीं पुण्य विदण्डा रे, रांकां घरे रतन ॥ १० ॥ १० ॥ किश्युं करूं सनिल साहेलडी रे, हियडे दुःख न समा यहीयहूं फाटे रत्नतलावगुं रे, केम जी मोरीमा य॥ ११ ॥ १०॥ प्राणसनेही जलनिधिमां पडयो रे,मने मलवानीबाश ॥ऊपापात करूं जो नीरमा रे, तो पोहोचं पियु पास ॥१२॥ १० ॥ हवे जीव्यानो स्वाद नहीं किश्यो रे, वर बोडीजे जीप्राण ॥ ढाल थ पूरी अग्यारमी रे, कहे जिनहर्ष सुजाण ॥ १३ ॥ ॥ १० ॥सर्वगाथा ॥ २२ए। ॥दोहा॥ ॥ प्रोतमविण जी नही, बंमिश पापी प्राण ॥ निशदिन वींधे मुज नणी, पंचबाण सपराण ॥ १ ॥ काया पावक संग्रहो, जीव ग्रहो जमराण ॥ रूप रसा Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76