Book Title: Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Jinharshsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 25
________________ या,धरता मन पाणंद॥ वलि दिवस केटले गए,जल खूटयु नही बुंद ॥॥ लोक सदु थाकुल थया, लूट एए लाग्यां प्राण ॥ मरण मान सदुको थया, सदुनी थाशे हाण ॥ ५ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ पारधीयानी देशी ॥ ॥ नांखे एम मदालसा रे, विनय करीने नेह रे ॥प्रीतमजी॥ मरशे सदु ए मानवी रे,पाणी पाखें एह रे ॥१॥प्रीतमजी ॥ तुमें मारा थातमजी, तमने कहूं जेम तेमजी ॥ जल मलशे कहो केमजी के ॥ करवो करवो रे उपाय कोइ तेह रे ॥ २॥ प्रीत ॥ ए यां कणी ॥ कुमर कहे जल केम मले रे,खारा समुश्मका र रे ॥ प्री० ॥ दीपकूप कोई नहीं रे, सुणी सुकुलि णी नार रे ॥प्रो० ॥ ३ ॥ मुज थानरण करंमियो रे, स्वामी उघाडो एह रे ॥ प्री० ॥ पांच रतन एमां हे ने रे, गुण सांजल तुं तेह रे ॥ ४ ॥ प्रो॥ नूदेवा धिष्ठित ने रे, पूजी मागे पास रे ॥प्री०॥ थाल क चोला कनकनां रे, विविध नाजन दे खास रे ॥५॥ ॥प्रीत ॥ शयनासन धादिक जला रे, मग गोधूम सुशालि रे ॥प्री० ॥जूषण मणिकंचन तणां रे, प्रग ट दुवे ततकाल रे ॥६॥प्री०॥ नाररतन नन मूकीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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