Book Title: Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Jinharshsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ (१३) कणी॥ तुज दरिमण देखीकरी जी, पवित्र थया मुज नेण ॥श्रवण सफल थया माहरा जी, सांजली ताह रविण ॥ २ ॥स० ॥ प्रापथकी पण तुज नणी जी, वाल्डं लाग्युं रे शील ॥ चित्त चूक्युं नहीं ताहरूं जी, शीलें पामोश लील ॥३॥ स० ॥ खुशी थर देवी करे जी, स्तवना बे कर जोड ॥ धागलें मूकी कनकनी जी, रयणनी दादश कोड ॥४॥ स० ॥ पाय प्रण मी देवी गई जी, समुदत्त तिहां शेठ ॥ शेठ कहे मु ज वाहणे जी, यावी बेसो निचिंत ॥ ॥ स ॥ध न जेइ प्रवहण चढ्यो जी, चाल्या समुइ मजार ॥ जरदरिया विचे चालतां जी, खूटयो वाहण वारि ॥ ॥ ६ ॥ स ॥ निगरण सुका लोकनां जी, जलविण सकारे होठ ॥धाकुल व्याकुल सदु थयां जी, मर वानी थर गोठ ॥ ७ ॥ स० ॥ हा हा धिक जलचरय की जी,अमें थया सत्त्व हीन ॥ जलचर जल पाखें मरेजी, अमें जलमांहे दोन ॥ ७ ॥ स० ॥ दीन व चन विलवे सहू जी, झुं थाशे जगदीश ॥ जल वि ण प्राण रहे नहीं जी, मर विशवा वीश ॥ ए॥ ॥ स० ॥ शास्त्र नीहालीने कहे जी, निर्यामक तेणि वार ॥ वेल उतरशे नीरनी जी,हमणा एनिरधार ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76