Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti

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Page 166
________________ १५८ उपदेशतरंगिणी. मान्यु नहीं. एवी रीते तेने उपदेश देने तेने जिनपूजनमां दृढ कर्यो. ते राजपुत्री पण केटलुक सुख जोगवीने स्वर्गे गइ. __ माटे एम विचारिने लाग्यवान माणसे लावपूर्वक जिननक्ति करीने पोतानुं जीवितव्य सफल करवं. तेपर दृष्टांत कहे. कोइएक नगरमां नंदक अने जनक नामना बे व्यापारी वसता हता. तेउ बन्नेनी उकानो साम सामी हती. लक हमेशां प्रजातमां उठीने पोतानी फुकाने जतो हतो, अने नंदक तो हहेशांप्रजातमां उठीने देवपूजा माटे जिनालयमांजतो हतो. ते जो जषक हमेशां मनमा एम विचारतो हतो के, धन्य मे आ नंदकने, के जे हमेशां प्रजातमां उठीने बीजुं कार्य गोडीने जिनपूजा करे . अने हुँ महापापी दरीजी धन मेलववानी श्वाथी प्रजातमांज अहीं आवीने पामरोनां मुखो जो बुं, माटे मारां जीवतरने धिक्कार ने, एवी रीतना शुञ्ज.ध्यानरूपी जलथी ते हमेशां पोतानां कर्मोरूपी मेलने दूर करतो हतो, अने पुण्यरूपी बीजने सिंचतो हतो. नंदक हमेशां एम चिंतवतो हतो के, हुँ ज्यारे देवपूजामां रोका बुं त्यारे महा पक्को नषक ग्राहको पासेथी खूब धन कमाइ ले जे; पण करुं शुं ? केमके में मूर्खे देवपूजानो अनिग्रह लीधो बे; हवे ते देवपूजाथी मलवानुं फल तो एकबाजु रह्यु, पण आथी तो उलटुं प्रव्य पण पेदा थश् शकतुं नथी. एवी रीतना कुविकटपोथी नंदक पोतानुं पुण्य हारी गयो एम विचारि डाह्या माणसोए एकतानथी जिनपूजन करवू. एकैव हि जिनपूजा, अर्गतिगमनं नृणां निवारयति ॥ प्रापयति श्रियमखिला-मामुक्तेनक्तितो विहिता ॥१॥ _अर्थ- एकज जिनपूजा माणसोना पुर्गतिगमनने निवारे , तेम नक्तिथी नेक मोनसुधिनी सघली लक्ष्मीने प्राप्त करावे . (वली था जिनपूजा सर्व पुण्यकरणीउँमा मुख्य होवाथी का

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