Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti
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उपदेशतरंगिणी.
१७५ अर्थ- संसाररूपी समुष्मांधी तरवाने नाव सरखी, मोक्षपदनी पदवी सरखी, जयंकर दलितारूपी पर्वतने जेदवामां वज्रसरखी, सुर, नर विगेरेनां सुखोनी प्राप्ति कराववामां कटपवृक्ष सरखी, पुःखरूपी अग्निने गरवामां जलधारा सरखी, सकल सुखोने करनारी, तथा रूप अने सौलाग्य वधावनारी, एवी जिनपूजा प्राणीउने सर्व कल्याणोनी करनारी था ? __ श्री जिनेश्वर प्रनुनी पूजा लोगो अने मुक्ति देनारी ने, माटे ते पूजा हमेशां करवी. आ लोक अने परलोकनां सुखोनी वा करनार एवा जे माणसे जिनेश्वर प्रनुनी पूजा करी नथी, ते माणस पुःखीज थाय ने. अने जिनपूजा करनार हमेशां सुखी थाय बे. ते पर दृष्टांत कहे.
दशपुर नामना नगरमां वज्रकर्ण नामे राजा हतो. तेने शिकार करवानुं व्यसन पड्यु हतुं. एक दहाडो वनमां कोश्क जैनमुनिए तेने उपदेश कर्यो के, हे राजन् ! जीवहिंसा करवाथी श्रा जव अने परजव, बन्नेमां दुःख लोगववां पडे बे. ते सांजली राजाए तेमने कह्यु के, हे जगवन् ! त्यारे हवे मारां कर्मों शी रीते नष्ट थाय ? त्यारे मुनिए कह्यु के, शुद्ध एवा श्री वीतराग प्रनुनी पूजा करवाथी कर्मोनो लय श्राय . ते सांजली राजाए एवो अनिग्रह लीधो के, आजथी हवे मारे श्री जिनेश्वर प्रनु शिवाय बीजा कोश्ने पण नमस्कार करवो नहीं. एक दहाडो तेणे पोताना स्वामी सिंहोदर राजाने नमतां थकां तात्विक रीते तो मुनिकामा रहेली जिनप्रतिमानेज तेणे नमस्कार को. ते जोइ क्रोध पामेला सिंहोदरे मोटां लश्करथी तेनी नगरीने घेरो घाट्यो. ते समये रामचंघजी तथा लक्ष्मणजीए पोताना साधर्मिक एवा वज्रकर्ण राजाने मदद करीने सिंहोदरने बांध्यो. तथा पजी तेने वज्रकर्ण साधे मित्रा करावी आपी. शास्त्रमा पण कडं ने के.

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