Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 185
________________ उपदेशतरंगिणी. १७७ गंधैश्चारुविलेपनैः सुकुसुमै पैरखंगादतैर्दीपैनॊज्यवरैर्विनूषणगणैर्वस्वैर्विचित्रैः फलैः॥ नानावर्णसुवर्णपूर्णकलशैः स्तोत्रैश्च गीतादिन्निः पूजां पूज्यपदस्य केऽपि कृतिनः कुवैति सौख्यावहाम्॥ अर्थ- सुगंधिथी, मनोहर विलेपनोथी, उत्तम पुष्पोथी, धूपोथी, अखंड अदतोश्री, दीपकोथी, उत्तम नैवेद्योथी, आ जूषणोनां समूहोथी, वस्त्रोथी, विचित्र फलोथी, नाना प्रकारना सुवर्ण कलशोथी, स्तोत्रोथी, तथा गीतादिकोथी, कोश्क कृतार्थ माणसोज सुखो आपनारी श्री जिनेश्वर प्रनुनी पूजा करे . इत्यादि बहु नेदोनी रचनापूर्वक जेजे देवपूजा करे बे, ते स्वर्गादिकनां सुखो लोगवे बे. वधारे शुं कहेवू ? कोइपण प्रकारे करेली जिनपूजा निष्फल जतीज नथी. कां ने के, असर्वनावेन यदृच्छया वा, परानुवृत्त्या विचिकित्सया वा॥ ये त्वां नमस्यंति चिनेचं, तेऽप्यामरौं संपदमाप्नुवंति __ अहीं मणिकार श्रेष्ठि तथा सेडक विप्रादिकश्री कथा वांची लेवी. पुण्यवान माणसोए वली पर्वने दिवसे तो जिनपूजा, तप, दान, शील आदिक पुण्यनां कार्यो विशेष प्रकारे करवां. जेम जगतमां दीवाली आदिकने दिवसे लोको लामु आदिकनां उत्तम नोजनो जमे बे, सारां सारां वस्त्रो पहेरे , तेम पर्युषणादिक पर्वमा विशेष प्रकारे पुण्य करवं. कां ने के, मंत्रोमां जेम परमेष्ठि मंत्र, तीर्थोमां जेम शत्रुजय, दानोमां जेम अन्नयदान, गुणोमां जेम विनय, व्रतोमा जेम ब्रह्मचर्य, नियमोमां जेम संतोष, तथा तपोमां जेम समता , तेम सर्व पर्वोमां पर्युषणापर्व श्रेष्ठ जे. वली तेवीज रीते असाड चोमासु, कार्तिक चोमासुं, फागण चोमासु, अने चैत्र तथा आश्विन मासनी अ

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208