Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti
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णामां पण हकने धर्मश्री धनहिणी राणी
उपदेशतरंगिणी. णामां पण तेमनां बहोतेर हजार कन्या साथे लग्न थयां हतां. शालिजत्रादिकने धर्मथी धनाढ्यपणुं प्राप्त थयु जे. कुमारपालादिकने धर्मथी राज्य मड्यु जे. रोहिणी राणीने धर्मश्रीज शोकनो अनाव अने आनंद थयो जे. तेम बाहुबलि आदिकने धर्मश्रीज इलित वस्तुनि प्राप्ति थएली ... दिने दिने मंजुलमंगलावलिः,
सुसंपदः सौख्यपरंपरा च ॥ इष्टार्थसिर्बिहुला च बुद्धिः,
सर्वत्र सिधिवति हि धर्मात ॥१॥ अर्थ- दनदन प्रते मनोहर मंगलोनी श्रेणि, उत्तम संपदार्ज, सुखोनी श्रेणि, वांछित पदार्थोनी सिद्धि, अत्यंत बुद्धि, अने सर्व जगोए सिद्धि धर्मश्रीज थाय ने. __ मंगलो आ जगतमा व्यथी अने नावथी एम बे प्रकारनां वे. दधि, दूर्वा, अक्षत, चंदन विगेरे व्य मंगलरूप जे. पण तेथी पण अधिक धर्मरूप मंगल . वली दर्पण, नासन, स्वस्तिक, कलश, मत्स्य, पुष्पमाला, श्रीवत्स, तथा नंदावर्त नामना पाउ मंगलोपण अव्य मंगलरूप जे. वली पुण्यशाली पुरुषोने घेर देवपूजा, गुरुसेवा, विवाह आदिक महोत्सव, बंदिठना जयजय शब्दो विगेरे मंगलो हमेशां श्राय . वली घरना घारपासे मदोन्मत्त हाथी फुले के सोनेरी साजश्री नूषित थएला घोडा हेपारव करे बे; वीणा, मृदंग, शंख विगेरेना मंगलिक शब्दो थाय , ते सघलुं धर्मनुंज महात्म्य . अहीं श्री शांतिनाथ चक्री आदिकनां दृष्टांतो जाणी लेवां. वली धर्मथीज धम्मिल श्रादिकनी पेठे उत्तम संपदा मले बे. विक्रमराजानी पेठे धर्मधीज सुवर्ण पुरुषनी प्राप्ति श्राय बे. वली धर्मश्रीज अजय

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