Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti

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Page 205
________________ उपदेशतरंगिणी. फलो आपे , तथा चंपक श्रादिक उत्तम जातिनां पुष्पवृक्षो सुगंधि पुष्पोने आपे बे, राजानी मेहेरबानी होय तो उदयन, वाग्नट्ट आदिकोनी पेठे अन्यनी तथा तेजनी प्राप्ति थाय ने, उत्तम पुत्र पोताना कुलनी अने पूर्वजोनी प्रख्याति करे . तेने माटे श्री आदिनाथ प्रनु, वीरप्रनु, रामचंजजी आदिकनां दृष्टांतो जाणी लेवां. तेवीज रीते श्री जैनधर्म पांडवो तथा सगरचक्री आदिकनी पेठे आ लोकमां राजाधि श्रादिकना लोगो तथा परलोकमा मोह आपे बे. राजप्रसादो दिव्यास्त्रं, वाणिज्यं हस्तिरत्नयोः ॥ जैनधर्मस्तथैकोऽपि, महालानाय जायते ॥१॥ अर्थ- राजानी कृपा, दिव्य शस्त्र, तथा हाथी अने रत्नोनो व्यापार जेम, तेम एक पण जैनधर्म महादानकारी पाय . राजानी कृपा जेम तीर्थोझार, यात्रा श्रादिकनां महा खान माटे थाय ने, तेम जेम चक्र रत्न आदिक दिव्य शस्त्रोथी नर-. तचक्री, वासुदेव, बलदेव, चेमाराजा, कोणिकराजा, करकंग, शिलादित्य आदिक राजाउए राज्यसमृधि मेलवेली , वली श्वेतहाथी विक्रम राजाने आपवाथी जावडना पिता नावडशाहे तेमना पासेश्री मधुमती आदिक चोर्यासी गामो मेखव्यां हतां, वली मेतार्य अने कृतपुण्ये श्रेणिक राजाने रत्न आपवाथी तेनी पुत्री साथे लग्न कर्या हतां, तथा श्रानड श्रावके सिघराजने मणि आपीने पांचसो गामोनी मालेकी, तथा सवाकोड सोनामोहोरो मेलवी हती, तेम जैनधर्म पण मोक्ष आदिकनो महालाल श्रापे जे. कडं ने के, धुमणिस्पर्शपाषाण-दक्षिणावर्तशंखवत् ॥ कृष्णचित्रकवशिव-शानदं जिनशासनम् ॥१॥ अर्थ- चिंतामणि रत्नना स्पर्शथी जेम पाषाण, तथा दक्षिणावर्त शंख, अने चित्रावेलीनी पेठे जिनशासन लाल देना .

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