Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti

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Page 200
________________ १२ उपदेशतरंगिणी. कां वे के, हजारो गमे पापो करीने, तथा सेंकडो गमे जीवोने मारीने पण तीर्थ मेलवीते तिर्यचो पण मोदे गएला ठे. तीर्थन सर्व महिमा शत्रुंजयमाहात्म्यथी जाणी लेवो. वली हीं बावन देवालयनी यात्रा करनारा सारंगशाह, चम्मालीस देवालयनी यात्रा करनार सोनपाल शाह, चोविस देवालयनी यात्रा करनार सालिंगशाह, समराशाह विगेरेनां दृष्टांतो जाणी लेवां. श्री बप्पनट्टीजी सूरिजी आकाशगामिनी नामनी विद्याना बलथी हमेशां पंचतीर्थांनी यात्रा करता हता. इति श्री तपागल नायक श्री सोमसुंदर सूरि श्री रत्नशेखर सूरि पं० नंदिरत्नगणि शिष्य पं० रत्नमंदिरगणि गुंफितायां श्री उपदेशतरंगिण्यां चतुर्थस्तीर्थयात्रोपदेशस्तरंगः ॥ श्रीरस्तु ॥ पंचमस्तरंगः प्रारभ्यते वे धर्मोपदे रूप पांचमो तरंग कहे. यत्कल्याणकरोऽवतारसमयः स्वप्नानि जन्मोत्सवो यत्नादिकवृष्टिरिंऽविहिता यडूपराज्यश्रियः ॥ यद्दानं व्रतसंपडुज्ज्वलतरा यत्केवलश्रीर्नवा ययातिशया जिने तदखिलं धर्मस्य विस्फुर्जितम् ॥ १ ॥ 1 अर्थ - जिनेश्वर प्रजुना जन्मसमये जे कल्याणक थाय बे, तेमनी माताने जे उत्तम स्वप्नो आवे बे. तेमनो जे जन्मोत्सव थाय बे, इंड जे तेमनी पासे रत्नोनी वृष्टि करे बे. वली तेमने जे रूपाने राज्यनी शोजा मंले बे, तेमनुं जे वरसीदान बे. उत्तम व्रत बे, तेम केवलज्ञाननी जे तेमने लक्ष्मी बे, तेम तेमने जे उत्तम अतिशय बे, ते सघलुं धर्मनुं माहात्म्य बे. वली निराधार एवा पण कुमारपालने जे श्रढार देशोना रज्यनी प्राप्ति थइ, श्री पालराजाना कुष्टनी शांति थइ, विक्रमराजाने

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