Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti
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उपदेशतरंगिणी. करेलु हतुं. अने तेथी तेणे त्यांना राजा खेंगारसाथे युद्ध करवं प्रड्यु. तेमां तेनां सात पुत्रो, तथा सातसो सुन्नटो मार्या गया. तेथी ते शेठ बप्पनटीजीसूरिना सेवक आमराजापासे गोपगिरिमां गया. अने त्यां व्याख्यानमां जश् तेमणे पोतानो वृत्तांत श्राचार्यजी महाराज.पासे निवेदन कर्यो. ते सांजली श्री बप्पनट्टीजी सूरिराजे ते श्री गिरनार तीर्थनो महिमा व्याख्यानमां कही बताव्यो. ते सांजली आमराजाए एवो अनिग्रह लीधो के, गिरनारपर श्री नेमिनाथ प्रनुनां दर्शन को विना मारे नोजन करवू नहीं. ते जोइ त्यांना बीजा एक हजार श्रावकोए पण तेवोज अनिग्रह लीधो. पनी त्यांथी संघ चालवा लाग्यो ते वखते एक लाख सुनटो, एकलाख घोडाठ, सातसो हाथी, वीसहजार उंटो; त्रण लाख पाला, वीसहजार श्रावको विगेरेनो परिवार हतो. बत्रीस उपवासे ते राजा अनुक्रमे स्तंजतीर्थमां पधार्या. तथा पनी अंबिका देवीना प्रसादथी दिगंबरोनो पराजय कों, अने त्यांथी प्रयाण करी गिरनारनुं तीर्थ स्वाधिन कयु. सद्व्यं सत्कुले जन्म, सिधदेत्रं समाधयः ॥ संघश्चतुर्विधो लोके, सकाराः पंच उर्लन्नाः ॥ १॥ __ अर्थ- सद्रव्य, सुकुलमा जन्म, सिघदेत्र, समाधि तथा चतुर्विध संघ ए पांच सकारो आ जगतमां पुर्खन .
शत्रुजयः शिवपुरं, नदी शत्रुजयान्निधा ॥ श्रीशांतिः शमिनां दानं, शकाराः पंच उर्खन्नाः॥१॥ अर्थ- शत्रुजय तीर्थ, शिवपुर, शत्रुजयी नदी, शांतिनाथ प्रनु तथा शमियो (मुनियो) प्रते दान, ए पांच शकारो उर्लन .
जे माणसो सर्व प्रकारोथी विधिपूर्वक श्रा तीर्थयात्रा

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