Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti
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उपदेशतरंगिणी. गलां चालीने तथा उत्तरासंग करीने, एकसो श्राप काव्योनी स्तुतिपूर्वक प्रचने वंदन कर्यु. प्रनाते प्रजुना मुखथी ते बन्नेनो वृत्तांत जाणीने श्रीकृष्णे शांबकुमारने ते पाटवी घोडो प्राप्यो, अने अश्वपालने अजव्य जाणीने नगरमांथी कहाडी मेट्यो. किंकरंति सुरास्तस्य, तस्य मित्रंति शत्रवः॥ येन जन्मांतरोपाता, पूजा पुण्यमहौषधी ॥१॥
अर्थ- जे माणसे जन्मांतरमा पुण्यरूपी महान् औषधिरूप जिनपूजा मेलवेली , तेनी पासे देवो तो चाकररूप श्रश्ने रहे, तथा शत्रुपण तेना मित्रो थाय ने. परोपकारः सुकृतैकमूलं, परोपकारः कमलाउकूलम् ॥ परोपकारः प्रजुताविधाता, परापकारः शिवसौख्यदाता
अर्थ- परोपकार , ते पुण्यनुं मूल बे, लक्ष्मीनी साडी ने, मोटा करनारो ने, तथा मोद सुखने आपनारो वे. (तेपर हुष्टांत कहे.) ... एक दहामो सौधर्मे पोतानी - सनामां कडं के, हे देवो? श्रीकृष्ण वासुदेव कोनो पण अवगुण बोलता नथी. ते सांजली कोश्क देवे तेनी परीक्षामाटे श्रीकृष्णाने जवाना मार्गमा एक कुतरानुं मुडई मेट्यु, अने तेमांथी अत्यंत सुगंध फेलावा लागी. . ते जो श्रीकृष्णे तेना सर्व अवगुणो दूर करीने कह्यु के, नीलमना थालमां जेम मोती, तथा आकशमां जेम तारा तेम श्रा कुतराना श्याम शरीरमां तेना दांतोनी श्रेणि शोले . ते जो तुष्टमान थएला देवे प्रत्यद थश् तेमने वरदान मागवानुं कडं. त्यारे श्रीकृष्णे कडं के, जो तुं मारापर तुष्टमान श्रयो होय तो तुं तेम कर के, जेथी सर्व लोकोने रोगनो उपव न थाय. केमके, श्रा मारुं अने था परनुं एवी गणना तो कुज माणसोनी

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