Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 194
________________ १६ उपदेशतरंगिणी. लाख घोडा, उत्रीससो हाथी, तथा बीजी पण केटलीक सामग्री सहित श्रीशत्रुजय तीर्थनी यात्रा करी हती. प्रन्नावना श्रीजिनराजचैत्यं, जिनमतिष्ठा जिनतीर्थयात्रा ॥ अमारिरेतानि महावृषाणि, पंचापि पंचांगरमाकराणि ॥१॥ अर्थ- प्रनावना, जिनमंदिर, जिनबिंबनी प्रतिष्ठा, जिनतीर्थोनी यात्रा, तथा अमारिपटह ए पांचे महाधर्मनां कार्यो, पंचांगी लक्ष्मीना हाथोरूप जे. हवे तेपर दृष्टांत कहे. एक दहाडो अढारसो कोटिध्वज व्यापारिउनी साथे कुमारपाल राजाए पौषध ग्रहण करेलो हतो, ते वखते कुमारपाल राजा श्री हेमचं महाराजने वांदिने तेमनी पासे बेग हता. ते वखते हेमचंघजी महाराजे तेमने तीर्थयात्रानो उपदेश आप्यो के, आरंलोनी निवृत्ति, व्यनी सफलता, संघर्नु वात्सट्य, जीर्ण चैत्योनो नझार, ए सघलां तीर्थयात्रानां फलो ने, अने तेथी तीर्थकर गोत्र बंधाश्ने आवटे मोद मले . ते सांजली कुमारपाल राजाए तेमने पूज्युं के, हे लगवन् ! यात्रा केटला प्रकारनी ने? त्यारे आचार्य महाराजे कडं के, अष्टाहिका, रथयात्रा, तथा तीर्थयात्रा एम यात्रा त्रण प्रकारोनी बे. ते सांजली कुमारपाल राजाए बहोतेर राणा तथा अढारसो कोटिध्वज शाहुकारो अने लाखो गमे बीजा श्रावकोना संघसहित श्री विमलाचल, गिरनार विगेरे तीर्थोनी घणाज आमंबरथी यात्रा करी. तेमां दरेक स्थानके स्नात्रमहोत्सव, ध्वजारोपण, संघवात्सट्य, आदिक कार्यों तेमणे कर्या, तेनो विशेष वृत्तांत जिनमंमन वाचकना रचेला कुमारपाल प्रबंधथी जाणी लेवो.

Loading...

Page Navigation
1 ... 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208