Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti

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Page 178
________________ १७० उपदेशतरंगिणी. टेलामा राजादिकथी पूजाता श्री वीर प्रनुने तेणीए पण जोया. तेमने जो अत्यंत हर्षथी विस्मित श्रश्ने ते विचारवा लागी के, अहो या जगतमां एक आज खरेखर देव ने, केमके, तेमने सुर असुर विगेरे आवीने सेवे . में पूर्व नवमां खरेखर श्रावा वीतराग प्रनुने पूज्या नथी, अने तेथी आ जवमा हुँ श्रावं कष्ट सहन करुं बु. माटे हवे आ समये तो ते श्री वीर प्रन्नुने पूजु, के जेथी आवता नवमां मने कष्ट सहन करवू पडे नहीं. एम विचारिने ते डोशी तो त्यां काष्ठनो नारो गेडीने, तथा केटलांकत्यांथी पुष्पो लेश्ने प्रजुने पूजवामांटे तुरत श्रावी, पण घरपणने लीधे तेनी आंखो नबली होवाथी ते मार्गमां पत्थरनी ठेस लागवाथी पडी गइ, अने त्यां रहेलो एक खीलो तेना मस्तकमां खुंची जवाथी ते त्यांज मृत्यु पामीने, पूजाना ध्यानना प्रत्नावथी देव रूपे थइ. त्यां अवधिज्ञानथी पोताना पूर्वजवनो वृत्तांत जाणीने ते देव श्री वीर प्रचने वांदवा माटे आव्यो. एटलामां त्यां जितारि राजा पण श्रावी पहोंच्यो, तथा ते देवने जोश्तेणे प्रन्नुने पूज्युं के, हे जगवन् ! आ देव अत्यंत कांतिवालो केम ? ते सांजली प्रनुए कह्यु के, हे राजन् ! तें मार्गमा जेमोशीने मृत्यु पामेली जोश् , तेनोज जीव अमारी पूजाना ध्यानथी श्रा देवरूपे थयो ने, अने ते हलुकर्मी होवाथी थोमीज मुदतमा मोदे जशे. जिनन्नवनं जिनबिंबं, जिनपूजां जिनमतं च यः कुर्यात।। तस्य नरामरशिवसुख-फलानि करपयवस्थानि ॥१॥ अर्थ- जिनमंदिर, जिनबिंब, जिनपूजा, तथा जिनमतने जे करेने, तेने मनुष्य, देव, तथा मोदसुखनां फलो हथेलीमां आवे वे. कां ने के, काष्ठ आदिकनां जिनमंदिरमा जेटलां परमाणु बे, तेटलां लाख वर्षोसुधि तेनो कर्ता स्वर्ग लोगवनारो थाय .

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