Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti
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उपदेशतरंगिणी.
नां नयनोथी पूजाय बे. अने जे माणस प्रजुने एकज वखत वंदन करे बे, ते हमेशां त्रणे जगतोथी वंदाय बे. वली जे माणस जिनेश्वरप्रजुनी स्तुति करे बे, ते परलोकमां इंद्रोना समूहथी स्तवाय बे, अने जे माणस तेमनुं ध्यान धरे बे, ते कर्मरहित थ योगीथी पण ध्यावाय बे.
नौरेषा जववारिधौ शिवपदप्रासादनिःश्रेणिका मार्ग: स्वर्गपुरस्य दुर्गतिपुरधारप्रवेशार्गला ॥ कर्मग्रंथिशिलोच्चयस्य दलने दंनोलिधारासमा कल्याणैकनिकेतनं निगदिता पूजा जिनानां परा १
अर्थ- श्री जिनेश्वर प्रजुनी पूजा आ जवरूपी समुद्रमां नावसमान बे, तेम मोक्षपदरूपी मेहेलनी नीसरणी बे, स्वर्गपुरनो मार्ग बे, दुर्गति नगरनां धारमां प्रवेश करवाने मी जागोल - सरखी बे, जोगांतराय तथा दानांतराय आदिक कर्मोरूपी पत्थरोना समूहने जांगवामां वज्रधारासरखी बे ने कल्याणना
एक स्थानक रूप .
नेत्रानंदकरी जवोदधितरी श्रेयस्त रोमंजरी श्रीमधर्ममहानरेंश्नगरी व्यापलताधूमरी ॥ हर्षोत्कृर्षशुप्रजावलहरी जावद्दिषां जित्वरी पूजा श्री जिनपुंगवस्य विहिता श्रेयस्करी देहिनाम् अर्थ - श्री जिनेश्वरप्रभुनी करेली पूजा नेत्रोने आनंद करनारी बे, जवरूपी समुद्रमां वहाणसमान बे, कल्याणरूपी वृदनी मांजर बे, श्रीमान् धर्मराजानी नगरी बे, श्रापदारूपी वेलोने नाश करवामां धूमरीसरखी बे, दुर्षनो उत्कृर्ष तथा उत्तम जावोनी लहरी सरखी बे, जावशत्रुर्जने जीतनारी बे, तथा प्राणीनुं कल्याण करना बे. ( तेपर दृष्टांत कहे बे. )

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