________________
प्रस्तुत करती है, जिसमें प्राणी मात्र के प्रति सम्मान हो तथा परस्पर सामंजस्य और सन्तुलन हो। पलायनवादी जीवनशैली से दूर अहिंसा में प्राणी मात्र के प्रति वैयक्तिक दायित्व के आनन्दपूर्वक निर्वहन के लिए प्रोत्साहित करती है ।
अहिंसा हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रही है। अहिंसक क्रांति' में ऐसे नेटिव अमेरिकन का उल्लेख है जिनका शेष विश्व से कोई सम्पर्क नहीं है, फिर भी उनमें एक उच्चस्तरीय वैश्विक भावना है। वे मानव मात्र, अन्य पशुओं, पेड़-पौधों, झरनों व पर्वतों के प्रति गहरा आदरभाव रखते हैं। अहिंसा में केवल मन, वचन और कर्म के द्वारा किसी प्राणी को मारने की इच्छा अथवा उसे चोट पहुंचाने के उद्देश्य का त्याग ही समाहित नहीं है अपितु दैनन्दिन जीवन में समस्त प्राणियों के प्रति करुणा का भाव भी समाहित है। अहिंसा विधेयात्मक कार्यों पर बल देती है जिससे एक व्यक्ति बुराइयों और संकटों का सामना कर सके। यह पराजित और भावुक लोगों के लिए नहीं है, न ही यह असुविधा, कष्ट और यहां तक कि मृत्यु से बचने के लिए है। सर्वाधिक कठिन और खतरनाक स्थितियों में इसे हम करुणा की सक्रिय अभिव्यक्ति कह सकते हैं। महात्मा गांधी के अनुसार अहिंसा डरपोक और कायरों का मार्ग नहीं है, यह उन बहादुरों का मार्ग है जो मृत्यु के वरण के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। जिसके हाथ में शस्त्र है, वह बहादुर हो सकता है लेकिन उससे भी अधिक बहादुर वह है जो बिना हिचकिचाहट, बिना शस्त्र उठाए मृत्यु का सामना करता है।
प्रत्येक मनुष्य में हिंसा एवं अहिंसा दोनों के बीज हैं। जब आतंक, अन्याय, दमन का सामना करना पड़ता है, तब व्यक्ति हिंसा को उचित मानने लगता है। जबकि अहिंसा के प्रति न्यूनतम प्रतिबद्धता होते ही हिंसा त्याज्य हो जाती है । अतः यदि हमें अहिंसा को समझना है तो कुछ सीमा तक हिंसा के स्वरूप को भी जानना होगा।
हिंसा का शब्दकोशीय अर्थ है - व्यक्ति या सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने अथवा उसे नष्ट करने के उद्देश्य से शारीरिक शक्ति का प्रयोग । सामान्य अर्थ में हिंसा विध्वंस की सूचक है। ऐसा विध्वंस व्यक्तिगत और संगठित, शारीरिक और मानसिक कई प्रकार का हो सकता है। चोट पहुंचाने वाले कार्यों के अतिरिक्त हिंसा में हिंसक विचार, मर्मान्तक भाषा, लोभ, अहं, धोखा आदि भी सम्मिलित होते हैं। व्यापक अर्थ में हिंसा का तात्पर्य है - एक व्यक्तित्व का तिरस्कार । इसे हम प्राणी मात्र तक भी व्यापक कर सकते हैं। और अधिक गहराई से देखें तो एक ऐसा कार्य जो व्यक्तित्व का निरादर करता है, हिंसा है। एक व्यक्ति अथवा अन्य जीवों को मात्र भोग्य पदार्थ के रूप में देखना उनके व्यक्तित्व का निरादर एवं उनके प्रति हिंसा ही है। हिंसा की व्यापक परिभाषा जैन आगमों में उपलब्ध है। जैनागमों के अनुसार प्रमाद व कामभोगों में आसक्ति हिंसा है अर्थात् प्रत्येक वह प्रवृत्ति जो राग-द्वेष सहित है, हिंसा है। रागादि स्वहिंसा है जबकि षट्का जीवों को मारना या उन्हें कष्ट देना पर हिंसा है ।
जैन आगमों में हिंसा के 432 प्रकार बतलाए गए हैं। यहां हम हिंसा के उन प्रकारों की चर्चा कर रहे हैं जिनका सम्बन्ध पर से है। इन्हें चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
तुलसी प्रज्ञा अंक 115
16
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org