________________
वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि प्रतिकण कण का प्रतिद्वन्द्वी होते हुए भी उसका पूरक है। वे दोनों साथ-साथ रहते हैं । परस्पर एक दूसरे का सहयोग करते हैं और उनमें क्रियाप्रतिक्रिया का व्यवहार भी चलता रहता है।
अनेकान्तवाद के आधार पर मुख्य रूप से चार विरोधी युगलों का निर्देश किया जाता है1. शाश्वत और परिवर्तन
2. सत् और असत्
3. सामान्य और विशेष
4. वाच्य और अवाच्य
1. शाश्वत और परिवर्तन
भगवान महावीर ने उत्पाद व्यय और ध्रौव्य, इस त्रिपदी का व्याख्यान किया है। प्रत्येक द्रव्य शाश्वत और परिवर्तन के नियम से आबद्ध है। जीव एक द्रव्य है। वह कभी अजीव नहीं बन सकता लेकिन मनुष्य, पशु, नारक या देव रूप में उसकी पर्यायें पलटती रहती हैं। कंगन को तोड़कर कुंडल बनवा लिए लेकिन सोना अपने रूप में स्थिर रहता है। इसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य में प्रकम्पन्न होता रहता है । उसकी पर्याय प्रतिक्षण परिवर्तित होती रहती है लेकिन वह अपने मूल रूप को नहीं छोड़ता । उसका मूल ध्रुव रहता है । इस प्रकार ध्रौव्य प्रकम्पन के मध्य अप्रकम्पन है । परिवर्तन के मध्य शाश्वत है। पर्याय (उत्पाद-व्यय) अप्रकम्पन की परिक्रमा करता हुआ प्रकम्प और शाश्वत की परिक्रमा करता हुआ परिवर्तन है । अस्तित्व में परिवर्तनशील और अपरिवर्तनशील दोनों प्रकार के तत्व विद्यमान रहते हैं । कोई भी अस्तित्व शाश्वत की सीमा से परे नहीं है और कोई भी अस्तित्व परिवर्तन की मर्यादा से मुक्त नहीं है। इसीलिए कहा है - द्रव्यं कदा केन वियुतं, दृष्टाः मानेन केन वा ।
अर्थात् पर्याय से रहित द्रव्य और द्रव्य से रहित पर्याय कब, कहां, किसने देखा ? अस्तित्व के लिए परिणमन अनिवार्य है । अनन्तकाल के अनन्त क्षणों में और अनन्त घटनाओं में किसी द्रव्य को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए अनन्त परिणमन करना आवश्यक है। यदि उसका परिणमन अनन्त न हो तो वह अनन्तकाल में अपने अस्तित्व को बनाए नहीं रख सकता। ऐसी स्थिति में आग्रहपूर्वक ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यह नहीं है। हमें कहना होगा - किसी अपेक्षा से यह वह है। गुलाब के फूल में जितनी सुगन्ध है उतनी ही दुर्गन्ध है किन्तु उसमें सुगन्ध व्यक्त है और दुर्गन्ध अव्यक्त। चीनी जितनी मीठी है उतनी ही कड़वी है किन्तु उसमें मिठास व्यक्त है और कड़वाहट अव्यक्त । यदि पूछा जाए घास में घी है या नहीं? तो उत्तर होगा- ओघ शक्ति की दृष्टि से है किन्तु समुचित शक्ति की दृष्टि से नहीं है ।
70
2. सत् और असत्
प्रत्येक द्रव्य में सत् और असत् का युगल विद्यमान है। सामने जो घड़ा पड़ा है वह मिट्टी का है, सोने या चांदी का नहीं है। मिट्टी की अपेक्षा से है और सोने और चाँदी की अपेक्षा से नहीं
तुलसी प्रज्ञा अंक 115
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org