Book Title: Tulsi Prajna 2002 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 73
________________ लिए आवश्यक है। अनेकान्तद्रष्टा नेता अपने संगठन में दोनों का उचित संतुलन स्थापित कर दोनों की शक्ति का उपयोग कर लेता है। हाथ में पांच अंगुलियों के समान संगठन में भी सभी व्यक्ति समान नहीं होते। संगठन में मंदगति, प्रखरमति एवं प्रज्ञासम्पन्न सभी प्रकार के व्यक्ति होते हैं । जो अनुशास्ता अनेकान्त को जीना जानता है वह सबकी क्षमता के अनुसार अलग-अलग तरीके से सबको समाहित करने का प्रयत्न करता है। उदारता अनुशास्ता की सफलता का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-उदारता । अनेकान्त चिन्तन को उदार एवं व्यापक बनाता है । इस कारण नेता समय पर सही निर्णय लेने में सक्षम हो सकता है और दूसरों के विरोधी विचारों में भी सारतत्त्व ग्रहण कर सकता है। वह मानता है, मैंने जो सत्य पाया है वह बूंद के समान है। दूसरे की बात में भी सत्य का अंश हो सकता है। तेरापंथ के आद्य आचार्य श्री भिक्षु ने संविधान बनाने के बाद लिखा-मैंने अपनी बुद्धि से संविधान लिखा है। आगे किसी आचार्य को परिवर्तन की अपेक्षा हो तो वह इसे बदल सकता है। यह उदारता अनेकान्त की ही परिणीत है। अनेकान्त अनुशास्ता को यह विवेक देता है कि कहां कहा जाए और कहां मौन रखा जाए ? यदि अवक्तव्यता का गुण नेता में नहीं होगा तो उसकी वाणी से अनेक बार विग्रह या तनाव की स्थिति भी आ सकती है। आज सर्वत्र सक्षम नेतृत्व की कमी आ रही है। आवश्यकता है नेतृगण अनेकान्त को सक्षम कर अपने जीवन के व्यवहारों में प्रयोग करें और वे देश और समाज को नयी गति दे। जैन विश्वभारती लाडनूं (राजस्थान) 68 - तुलसी प्रज्ञा अक 115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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