Book Title: Tulsi Prajna 2002 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 38
________________ अभय शांति का आध्यात्मिक सिद्धान्त : विश्व राज्य का सिद्धान्त भी मेरी दृष्टि में राजनीतिक सिद्धान्त है। शांति का आध्यात्मिक सिद्धान्त सह-अस्तित्व का विचार है। अनेक धाराएं भी सह-अस्तित्व का विकास होने पर एक धारा की भांति व्यवहार कर सकती हैं। यह विचार आना राजनैतिक पक्ष है और बाहर आना आध्यात्मिक पक्ष है । गहराई में उतरें तो अनुभव होगा कि यह सोलह आना आध्यात्मिक पक्ष है। इस पक्ष की पुष्टि के लिए आध्यात्मिक सिद्धान्तों को विकसित और पुष्ट करना आवश्यक है। सह-अस्तित्व की सिद्धान्त श्रृंखला इस प्रकार होगी : - शांति का आधार व्यवस्था व्यवस्था का आधार सह-अस्तित्व सह-अस्तित्व का आधार समन्वय समन्वय का आधार सत्य का आधार अभय का आधार अहिंसा अहिंसा का आधार अपरिग्रह अपरिग्रह का आधार संयम शांति के सूत्र : जनता जो कुछ कर सकती है, वह यही कि विश्वभर के शांतिवादी संगठनों का एकीकरण हो। वे एक भावना से विश्व मानस को इन सिद्धान्तों से प्रभावित करें : (1) निरपेक्ष या आग्रहपूर्ण नीति का परित्याग। (2) सापेक्ष या तटस्थ नीति का स्वीकरण। (3) स्थिति का स्थायित्व की दृष्टि से मूल्यांकन। (4) स्थिति का परिवर्तन की दृष्टि से मूल्यांकन। (5) आत्मविश्वास और पारस्परिक सौहार्द का विकास। (6) मानवीय एकता की तीव्र अनुभूति। प्रबल है अस्तित्व का प्रश्न : यह विश्व एकान्ततः न अखण्ड है और न विभक्त । यदि यह विश्व अखण्ड ही होता, तो व्यवहार नहीं होता, उपयोगिता नहीं होती, प्रयोजन नहीं होता। अगर विश्व खण्डात्मक ही होता तो ऐक्य नहीं होता। अस्तित्व की दृष्टि से यह विश्व अखण्ड भी है, प्रयोजन की दृष्टि से यह विश्व खण्ड भी है। आज मनुष्य जाति के सामने अस्तित्व का प्रश्न प्रबल है। उसे वह विश्व राज्य या सहअस्तित्व - इनमें से किसी एक सिद्धान्त के सहारे ही समाहित कर सकती है। यर्थावादी और धार्मिक धारणा से सह-अस्तित्व का विकल्प अधिक संभव है।" तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002 - - 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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