Book Title: Tulsi Prajna 2002 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 55
________________ कायपरक व्यवहार-1. वचनपरक व्यवहारों को शरीर द्वारा सम्पन्न करना, 2. विशेषतः उदारता, सहनशीलता की अभिवृद्धिकारक चर्चाओं में रुचि लेना, भाग लेना, 3. ऐसे कार्यक्रमों को सुनना, देखना, 4. अनेकांतपरक कार्यक्रमों की योजना, प्रस्तुति एवं प्रचार करना। स्वतंत्रता की रक्षा : एक अहिंसक मूल्य दूसरों को पराधीन बनाना हिंसा है और उनकी स्वतंत्रता की रक्षा करना अहिंसा का ही एक आयाम है। वाचिक व्यवहार-1. सबकी स्वतंत्रता की रक्षा करने हेतु संयम, आत्मानुशासन आदि का विचार प्रकट करना, 2. सभी को उनके आवश्यक योग्य अधिकार देने का विचार प्रकट करना, 3. अनिवार्य स्थितियों के अलावा किसी के स्वतंत्र कार्य करने में बाधाकारी वचन नहीं बोलना, 4. अपने विचार (अनिवार्य स्थिति के अलावा) किसी अन्य पर नहीं थोपने का कथन करना, 5. सभी की स्वाधीनता का सम्मान प्रकट करना। कायिक व्यवहार-1. बच्चों को (विशेष परिस्थिति के अलावा) बांधकर नहीं रखना, 2. पक्षियों को (विशेष परिस्थिति के अलावा) बंधन में नहीं डालना, 3. पराधीन बंधनग्रस्त प्राणियों को स्वाधीन बनाने में सहयोग करना, 4. सभी को उनके यथायोग्य आवश्यक अधिकार (हक) देना, 5. प्रतिनिधि व्यक्तियों को शामिल कर नियमादि का निर्माण करना। पूर्वोक्त व्यवहारों के शिक्षण की संक्षिप्त योजना प्रस्तुत की जा रही है। इससे पूर्व इन व्यवहारों का सम्यक् निर्धारण एवं पूर्व परीक्षण आवश्यक है। जो इस प्रकार है:1. योग्य निर्णायक नियुक्त कर उनसे उक्त व्यवहारों पर राय लेना एवं यथायोग्य सुधार करना 2. घर में, विद्यालय में छोटान्यादर्श ( Sample) लेकर उक्त व्यवहारों का परीक्षण (Tryout) करना। उक्त व्यवहारों का घर में, विद्यालय में, कार्यालय में सामान्य शिक्षण निम्न प्रकार किया जा सकता है: 1. दैनिक जीवन के लिए कुछ व्यवहारों का चयन करना, 2. दैनिकचर्या में निश्चित व्यवहारों का अभ्यास करना, 3. दिन में प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल उनका स्मरण करना। इन पर कितना पालन हुआ, क्यों नहीं हुआ? विचार करके भविष्य के लिए संकल्प करना। 4. व्यवहारों के शिक्षण की बाधाओं को नोट कर उनके निवारण का प्रयास करना। व्यवहारपरक मनोविज्ञान को दृष्टिगत कर इनमें यथायोग्य परिवर्तन/परिवर्धन किया जा सकता है। उनका व्यवहार विश्लेषण तो एक अत्यंत सामान्य कार्य है। शोध विशेषज्ञ इन पर शोध प्रयोजनाएं बनाकर व्यापक कार्य सम्पन्न करें, ऐसी अभ्यर्थना है। इस प्रकार मूल्यों के व्यवहारपरक विश्लेषण को आगे बढ़ाकर मूल्यों की शिक्षा में महत्त्वपूर्ण कार्य किए जाने की असीम सम्भावनाएं छिपी हुई हैं। प्लॉट-13, अहिंसापुरी फतहपुरा उदयपुर-313004( राजस्थान) 50 - तुलसी प्रज्ञा अंक 115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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