Book Title: Tulsi Prajna 2002 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 53
________________ अहिंसा का व्यवहारपरक विश्लेषण एवं शिक्षण - प्रो. चान्दमल कर्णावट अहिंसा जीवन मूल्यों में अमूर्त हैं, अदृश्य हैं। अदृश्य होने से उन्हें देख-परख नहीं सकते। उनकी शिक्षा कैसे दी जाए? यह एक महत्त्वपूर्ण अहम प्रश्न है। इस संबंध में मनोविज्ञान ने हमारी पर्याप्त सहायता की है। मनोविज्ञान को आज मानव व्यवहारों का अध्ययन माना गया है। इसी सन्दर्भ में शिक्षा को भी आज Modification of behaviour या व्यवहार परिवर्तन या व्यवहारों में सुधार की संज्ञा दी गई है । मूल्यों के भी व्यवहारपूरक विश्लेषण से शिक्षण और परीक्षण दोनों कार्य सुविधा पूर्वक सम्पन्न हो सकते हैं। ____ लगभग पांच दशाब्दि पूर्व ब्लूम ने Tazanomy of में संज्ञानात्मक, भावात्मक एवं मनोशारीरिक क्षेत्रों में मानव व्यवहारों का विश्लेषण प्रस्तुत किए गए व्यवहार विश्लेषण का शिक्षा जगत में पर्याप्त उपयोग किया गया और किया जा रहा है। आध्यात्मिक, धार्मिक एवं नैतिक क्षेत्रों में व्याख्यायित अहिंसादि मूल्यों का क्षेत्र की आवश्यकतानुसार विस्तृत व्यवहारपरक विश्रूषण की आज अपेक्षा है। इससे इन मूल्यों की शिक्षा और परीक्षा का मार्ग प्रशस्त हो सकता है । मूल्यों की उपलब्धि भी सुनिश्चित हो सकती है। ये शिक्षण परीक्षण के उद्देश्य हो सकते हैं। इसी आवश्यकता को दृष्टिगत करके अहिंसा के विभिन्न स्वरूपों, यथाकरुणा, आत्मतुल्य, रक्षा आदि का व्यवहारपरक विश्रूषण करने का प्रयास किया गया है। आगे दिये गए व्यवहारों में से घर, विद्यालय, कार्यालय आदि में यथायोग्य का चयन कर उनका विकास किया जा सकता है। अहिंसा की तरह अन्य मूल्यों का भी व्यवहारपरक विश्लेषण किया जा सकता है। अहिंसा के निम्नांकित रूपों का क्रमश: व्यवहारपरक विश्लेषण प्रस्तुत है: 48 ---- तुलसी प्रज्ञा अंक 115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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