Book Title: Tulsi Prajna 2002 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 54
________________ करुणा : अहिंसा का एक रूप वाचिक स्तर:- 1. वचन से दयालुतापूर्ण कथन करना, 2. जीव रक्षा की बात करना, 3. वचन से स्नेह, सहानुभूति, क्षमाशीलता के कथन करना, 4. प्राणिमात्र को सुखी बनाने की बात करना, 5. जीवमात्र के दुःख निवारण का कथन करना, 6. पानी, हवा, पृथ्वी, वनस्पति के अनावश्यक उपयोग न करने का कथन करना, 7. बुरी आदतों का उपयोग न करने का कथन करना, 7. बुरी आदतें, जैसे-जुआ, नशा, मांसाहार के त्याग करने की प्रेरणा देना, 8. सेवकों, पशुओं आदि पर भी अधिक कार्यभार/भार न डालना, उन्हें पीड़ित न करने का कथन करना, 9. सबकी स्वतंत्रता की रक्षा की बात करना। कायिक व्यवहार-उपर्युक्त वाचिक व्यवहारों को कायिक रूप देकर उन्हें शरीर से संपन्न करना । जैसे-1. खोए बालकादि या मार्ग भूले को यथास्थान पहुंचाना, 2. दुर्घटनाग्रस्त, रूग्ण को चिकित्सालय तक पहुंचाना, 3. आदीपक औषधि, वस्त्र, भोजन, पानी आदि देकर विकलांग, अपंग को आवश्यक सहयोग देना, 4. पानी, वनस्पति, हवा, पृथ्वी आदि का केवल आवश्यक उपयोग ही करना, 5. जुआ, नशादि कुव्यसनों का त्याग करना, 6. पशु-पक्षियों की यथायोग्य रक्षा करना, 7. अपढ़ को शिक्षा में सहयोग करना, आदि। मानसिक व्यवहार-जो वक्तव्य नहीं हो सकते, वे दृश्य नहीं हैं । वाचिक और कायिक व्यवहार मानसिक व्यवहारों यथा- भावना, विचार एवं चिंतन को पुष्ट कर सकते हैं। आत्मतुल्यता : एक अहिंसक व्यवहार वचनपरक व्यवहार:-1. सब जीवों को आत्मतुल्य समझना अहिंसा है । अतः प्राणीमात्र के साथ आत्मतुल्य व्यवहार का कथन करना, 2. जैसे मुझे सुख प्रिय है, वैसे ही सबको सुख प्रिय है, का विचार व्यक्त करना, 3. जैसे मुझे दुःख अप्रिय है, वैसे ही सभी प्राणियों को दु:ख अप्रिय है, का कथन करना, 4. जैसा व्यवहार हम औरों से चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार हम औरों के साथ करें, ऐसा विचार प्रकट करना, 5. जैसे मुझे कठोर वचन अप्रिय हैं, वैसे ही औरों को भी अप्रिय और पीड़ाकारी हैं, यह बताना, 6. जैसे मुझे कठोर व्यवहार प्रिय नहीं वैसे ही औरों को भी कठोर व्यवहार प्रिय नहीं, ऐसा विचार व्यक्त करना, 7. मेरी तरह सभी को मधुर व्यवहार, मधुर वचन प्रिय हैं । अतः सबको अपनी आत्मा के समान जानकर मधुर व्यवहार करने का कथन करना। कायिक व्यवहार-उपर्युक्त सभी वचनपरक व्यवहारों को शरीर से संपन्न करना। . अनेकान्त : अहिंसा का एक व्यवहार अपने से भिन्न विचारों को भी अपेक्षा से स्वीकारना, आदर करना अनेकान्त अथवा स्याद्वाद है । सत्य के अन्वेषण का यह बुनियादी आधार है। इसे वैचारिक अहिंसा माना गया है। वचनपरक व्यवहार-1. वाणी में दुराग्रह का त्याग करने का विचार प्रकट करना, 2. वाणी में सहनशीलता, उदारता की अभिव्यक्ति करना, 3. एकांत आग्रहपूर्ण स्थितियों में न उलझने का विचार व्यक्त करना, 4. भाषण, चर्चा आदि में आग्रहरहितता, उदारता का कथन करना, 5. उदारतापूर्ण विचारों का वचनों से स्वागत करना, 6. लेखन में आग्रहमुक्त बनना, 7. घर, परिवार, समाज सर्वत्र उक्त व्यवहारों का वाणी में निर्वाह करना। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002 - 49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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