Book Title: Tulsi Prajna 2002 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 48
________________ इस समस्या का सुन्दर समाधान अहिंसक आहार शाकाहार में ही सम्भव है। एक किलोग्राम जन्तु प्रोटीन (मांस) हेतु लगभग ८ किलोग्राम वनस्पति प्रोटीन की आवश्यकता होती है। सीधे वनस्पति उत्पादों का उपयोग करने पर मांसाहार की तुलना में सात गुना व्यक्तियों को पोषण प्रदान किया जा सकता है ।२६ किसी खाद्य श्रृंखला में प्रत्येक पोषक स्तर पर ९० प्रतिशत ऊर्जा का खर्च होकर मात्र १० प्रतिशत ऊर्जा ही अगले पोषक स्तर पर पहुंच पाती है। पादप प्लवक, जन्तु प्लवक आदि से होते-होते मछली तक आने में ऊर्जा का बढ़ा भारो भाग नष्ट हो जाता है और ऐसे में एक चिंताजनक तथ्य यह है कि विश्व में पकड़ी जाने वाली मछलियों का एक चौथाई भाग मांस उत्पादक जानवरों को खिला दिया जाता है। ___ इस प्रकार विकराल खाद्यान्न समस्या का एक प्रमुख कारण मांसाहार तथा एक मात्र समाधान शाकाहार ही है। (३) आहार और जल समस्या-विश्व के करीब १.२ अरब व्यक्ति साफ पानी पीने योग्य के अभाव में है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि वर्ष २०२५ तक विश्व की करीब दोतिहाई आबादी पानी की समस्या से त्रस्त होगी, विश्व के ८० देशों में पानी की कमी है। इस समस्या के संदर्भ में एक किलो ग्राम गेहूं के लिए जहां मात्र ९०० लीटर जल खर्च होता है वहीं गोमांस के उत्पादन में १.०० लाख लीटर जल खर्च होता है। तथ्य को ध्यान में रखने पर अहिंसक आहार शाकाहार द्वारा समस्या का समाधान भी दिखाई दे जाता है। (४) आहार और बीमारियां-विश्व स्वास्थ्य संगठन की बुलेटिन संख्या ६३७ के अनुसार मांस खाने से शरीर में लगभग १६० बीमारियां प्रविष्ट होती हैं ।२८ शाकाहार विभिन्न व्याधियों से बचाता है। अधिकांश औषधियां वनस्पतियों से ही उत्पन्न होती हैं। __हरी सब्जियों में उपस्थित पोषक तत्त्व तथा विटामिन 'ई' एवं 'सी' प्रति ऑक्सीकारकों की तरह कार्य करते हैं । अल्साहाइमर रोग से बचाने में इन प्रति आक्सीकारकों की ही भूमिका होती है। शरीर से मुक्त मूलकों की सफाई में प्रति आक्सीकारक अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । मुक्त मूलक कैंसर सहित अनेक घातक रोगों के लिए उत्तरदायी होते हैं। (५) जैव विविधता संरक्षण और जीव दया-गत दो हजार वर्षों में लगभग १६० स्तनपायी जीव, ८८ पक्षी प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं और वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार आगामी २५ वर्षों में एक प्रजाति प्रति मिनट की दर से विलुप्त हो जायेंगी।३० । विभिन्न खाद्य श्रृंखलाओं के द्वारा समस्त जीव एवं वनस्पति आपस में इस तरह से प्राकृतिक रूप से जुड़े हुए हैं कि किसी एक श्रृंखला के हटने या लुप्त हो जाने से जो असंतुलन उत्पन्न होता है उसकी पूर्ति किसी अन्य के द्वारा असंभव हो जाती है। उदाहरणार्थ-प्रति वर्ष हमारे देश में दस करोड़ मेंढक मारे जाते हैं पिछले वर्ष पश्चिमी देशों को निर्यात करने के लिए एक हजार टन मेंढक मारे गये। यदि ये मेंढक मारे नहीं जाते तो प्रतिदिन एक हजार टन मच्छरों और फसलनाशी जीवों का सफाया करते। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002 C 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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