Book Title: Tulsi Prajna 2002 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 40
________________ ऐसी स्थिति में बहुत आवश्यक है- मानवीय संबंधों में परिवर्तन, समानतापूर्ण मृदु व्यवहार का विकास । मानवीय संबंधों का परिवर्तन ही विश्व-बंधुत्व की आधारभूमि बन सकेगा और तभी विश्वशांति चिरस्थायी हो सकेगी। सन्दर्भ : - वाचस्पति इन्द्र : भारतीय संस्कृति का प्रवाह -- प्रकाशक भारतीय साहित्य मन्दिर, फव्वारा, दिल्ली। Nimi सिन्हा डॉ. वशिष्ठनारायाण : जैन धर्म में अहिंसा । प्रकाशक सोहनलाल जैन, धर्म प्रचारक समिति --- अमृतसर, 1972 __उपाध्याय पं. बलदेव : भारतीय दर्शन पृष्ठ 54-55 सिन्हा डॉ. वशिष्ठनारायण : जैन धर्म में अहिंसा अमृतसर । 6. (आचार्य महाप्रज्ञ) श्रमण महावीर i w on c oi 8. आचार्य महाप्रज्ञ : समस्या को देखना सीखें : आदर्श साहित्य संघ प्रकाशन, 1999 9. सिन्हा डॉ. वशिष्ठनारायण : जैन धर्म में अहिंसा, नई दिल्ली पृष्ठ - 258 10. मुनि नथमल : श्रमण महावीर 11. आचार्य महाप्रज्ञ : समस्या को देखना सीखें। आदर्श साहित्य संघ प्रकाशन, 1999, नई दिल्ली पृष्ठ 46 12. वही, पृष्ठ 47 13. वही, पृष्ठ 49 14. मुनि धनंजय कुमार : महाप्रज्ञ जीवन दर्शन, नई दिल्ली, पृष्ठ 176 15. आचार्य महाप्रज्ञ : समस्या को देखना सीखें, साहित्य संघ प्रकाशन पृष्ठ - 33-34 16. वही, पृष्ठ 36 17. वही, पृष्ठ 36 18. आचार्य महाप्रज्ञ : समस्या को देखना सीखें, आदर्श साहित्य संघ प्रकाशन, 1999, नई दिल्ली। 31, नेहरू पार्क जोधपुर (राजस्थान) तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002 ........... 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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