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जैन पारिभाषिक कोश का कार्य सम्पादन
आगम सम्पादन एवं आगम अनुसन्धान का कार्य एक कठिन तपस्या है। इस श्रुतयज्ञ के अनुष्ठान में श्रम, समय, शक्ति, संकल्प और साधना को बिना समर्पित किए कार्य आगे नहीं बढ़ सकता। इस कार्य में पारदर्शी प्रतिभा, अनाग्रही सोच, सत्यग्राही बुद्धि एवं आगमों का गहन ज्ञान अपेक्षित होता है। बिना भागीरथ प्रयत्न किए आगम कार्य पूर्णता तक नहीं पहुंचता। जैन तेरापंथ सम्प्रदाय में वर्षों से आगमों के सम्पादन, अनुशीलन एवं अध्ययन-अध्यापन का सचेतन पुरुषार्थ चालू है। आचार्य श्री तुलसी की वाचना में आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने इस दिशा में अनेक आगम ग्रन्थों का सम्पादन, अनुवाद, भाष्य, टीका आदि का दुरूह कार्य सम्पन्न कर ज्ञान सम्पदा का योगक्षेम किया है, जैन समाज उनके प्रति कृतज्ञता और कृतार्थता का अनुभव करता है।
इस वर्ष भी सन् 2000 के लाडनूं चातुर्मास में अन्य अनेक महत्वपूर्ण कार्यों की बहुलता होते हुए भी आपने जैन पारिभाषिक शब्दकोश को जो पिछले दो वर्षों से अधूरा पड़ा था, पूर्णता देने का संकल्प किया है। आपका चिन्तन रहा है कि आने वाला युग आंगल भाषा का युग होगा, अतः जैन आगमों का पारिभाषिक शब्द कोश अंग्रेजी भाषा में बनाया जाए ताकि जैन साहित्य के अनुवाद में यह एक मॉडल का काम कर सके। गुरुदेव तुलसी की अनुज्ञा पाकर सन् 1996 के लाडनूं चातुर्मास में इस कार्य को आपने शुरू कर दिया। डॉ. नथमल टाटिया, कुछ साध्वियां और समणियां इस कार्य में संलग्न रहीं। सबसे पहले ठाणं के पारिभाषिक शब्दों का चयन किया। प्रायः सभी शब्दों का विमर्श आचार्यवर के साथ करने के बाद डॉ. टाटिया उनका अंग्रेजी में अनुवाद करते। उस समय एक केनेडियन महिला (एने) भी साथ बैठती थी। डॉ. टांटिया अनुवाद करने के बाद उस कार्ड को उसे दिखाते । वह जैन-धर्म से परिचित थी। इसलिए परिभाषा को गहराई से देखती और अपना उचित परामर्श भी देती। उस समय लगभग 1300 शब्दों की परिभाषाएं तैयार हो गई थी। भगवती और पन्नवणा को छोड़कर प्रायः सभी आगमों के शब्दों का चयन कर लिया गया था।
___ आचार्यवर की अत्यधिक व्यस्तता के कारण वह कार्य बीच में ही रुक गया। गत वर्ष दिल्ली चातुर्मास में आचार्यवर ने चिन्तन किया था कि इस कार्य को सम्पन्न करना चाहिए। वहां भी आचार्यवर का कार्यक्रम बहुत अधिक व्यस्त रहा। पर इस चातुर्मास में यह निर्णय ले लिया गया कि वहां इस कार्य को सम्पन्न करना है। लाडनूं पधारते ही आचार्यवर ने डॉ. दयानन्द भार्गव को इस कार्य में सम्मिलित होने के लिए निर्देश दिया। डॉ. भार्गव आचार्यवर के साहित्य का काम कर रहे हैं फिर भी वे इस कार्य में साथ हो गए।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ एवं युवाचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में जैन पारिभाषिक कोश सम्पादन का कार्य द्रुतगति से निरन्तर चल रहा है। पन्नवणा का कार्य सम्पन्न हो चुका है। संप्रति भगवती के पारिभाषिक शब्दों के संचयन का कार्य चल रहा है। विश्वास है, यह कार्य इसी चातुर्मास में पूरा हो जाएगा। इस कार्य में साध्वी विश्रुतविभाजी, समणी नियोजिका मुदित प्रज्ञाजी आदि कई समणियां लगी हुई हैं। श्रुताराधना का पुरुषार्थी प्रयत्न आचार्य श्री महाप्रज्ञ के दिशानिर्देशन में शीघ्र ही प्रबुद्ध जनों के हाथों में गुरु कृपा का प्रसाद बनकर पहुंचेगा, ऐसी आशा है।
ALI NITITIV तुलसी प्रज्ञा अंक 109
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