Book Title: Tulsi Prajna 2000 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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9. आचार्यभिक्षु, स्मृतिग्रन्थ, पृ. 292 10. गच्छ ऋषिकुलं-मूलाचार वृत्ति 4/185 11. सप्तपुरुषकस्त्रिपुरुषको वा गच्छ: वही, 4/174 12. सर्वार्थसिद्धि, 9/24, पृ. 442 13. स्थानांग टीका (अभयदेवसूरी), पृ. 516 14. मूलाचार, 4/166 15. आचार्य भिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 291 16. प्रवचनसार ता. वृत्ति, 203, पृ. 276 17. यापनीय और उनका साहित्य, पृ. 42 18. गोपुच्छिका श्वेतवासा द्राविडो यापनीयकाः।
. निपिच्छकाश्चेति पंचैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः॥ इन्द्रनन्दिश्रुतावतार, 10 19. पद्मचरितम् भाग-1, श्री नाथूराम प्रेमी का प्राक्कथन, सन् 1928 20. तस्मिन्गते स्वर्गभुवं महर्षी दिव:पति नर्तुमिवप्रकृष्टां।
तदन्वयोद्भूत मुनीश्वराणां बभूवुरित्थं भुवि संघभेदाः।। 19 जैन सिद्धान्त भाष्कर अंक 2-3 में
प्रकाशित शिलालेख। 21. जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, भाग 2, पृ. 55 22. इन्द्रनन्दि श्रुतावतार श्लोक, 91-95 23. आयातौ नन्दिवीरौ प्रकटगिरिगुहावासतोऽशोकवाटा देवाश्चान्योऽपरादिर्जित इतियतयो सेन
भद्रायौ च। पंचस्तप्यात्सगुप्तौ गुणधरवृषभ: शाल्मलीवृक्षमूलात्। निर्यातौ सिंहचन्द्रौ प्रथितगुणगणौ केसरात्खण्डपूर्वात् ।।
-इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतार श्लोक 96 24. आचार्य भिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 295 25. वही, 26. यापनीय और उनका साहित्य, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी, पृ. 41 27. आचार्य भिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 294 28. दर्शनसार, 24-28 29. जैनशिलालेख संग्रह, भाग-2, पृ. 213-214 30. पं. बुलाकीचन्दकृत वचन कोश 31. जैन शिलालेख संग्रह, भाग-३, प्रस्तावना, पृ. 62 32. जैन धर्म का प्राचीन इतिहास, भाग-2, पृ. 57
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 AWINNI
INV 21
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