________________
जीवनचर्या के ये नौ नियम श्रावक के लिए प्रेरणा के प्रकाश दीप बने है। क्योंकि बढ़ती हुई असंयम की मनोवृत्ति, आर्थिक मृगतृष्णा, पदार्थपरक दृष्टिकोण, सुविधावाद, सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास आदि सीधे जैन संस्कृति पर प्रहार करते जा रहे हैं। जब युग पुराने मूल्यों को नकार देता है तो सर्व सम्मत नए मूल्यों की प्रतिष्ठापना जरूरी हो जाती है अन्यथा समाज की स्वस्थता और संस्कार समृद्धि का सुरक्षित रहना संभव नहीं होता । अतः सामाजिक मूल्यों की सुरक्षा के साथ जीवन मूल्यों के विकास और संरक्षण में सौद्देश्य जागरूकता के साथ जीए जाने वाले नौ सूत्रों की साधना का प्रेरक संबोध दिया गया है
|
श्रावक की जीवन शैली का पूरा नक्शा आचार्य श्री तुलसी ने श्रावक संबोध में खींच दिया । आचार्यश्री ने श्रावक की उस धारणा को तोड़ा कि सिर्फ धार्मिक उपासना से श्रावक सही मायने में श्रावक नहीं बनता । श्रावक के जीवन में उसके चरित्र की विशेष पहचान भी होनी चाहिए। 'मैं जैन हूं' उसका गर्व जन्मना नहीं, कर्मणा होना चाहिए। अतः श्रावक का चरित्र व्यवहार में भी जैन संस्कारों का जीवन्त उदाहरण बने। इसलिए आचार्यश्री ने जैन जीवन शैली की प्रतिष्ठापना की। जैन जीवन-शैली के नौ सूत्रों की साधना श्रावकत्व की सार्थक पहचान है—
1. सम्यग् दर्शन 2. अनेकान्त 3. अहिंसा 4. समण संस्कृति 5. इच्छा-परिमाण 6. सम्यग् आजीविका 7. सम्यग् संस्कार 8. आहारशुद्धि व व्यसन मुक्ति 9. साधर्मिक वात्सल्य
( १ / ६५-६६ )
नव आयामी जैन जीवन-शैली व्रती-समाज की संरचना में एक सक्रिय ठोस कदम है। असंयम, अस्थिरता, असहिष्णुता और भोगवाद की चुनौतियों के बीच जैन जीवन-शैली का अभ्यास समग्र दर्शन की स्वस्थता का प्रतीक है।
श्रावक संबोध सामायिकी एवं शाश्वती समस्याओं के समाधान में सटीक भूमिका निभाता है। जैन जीवन-शैली की प्ररूपणा वस्तुतः मनुष्य को समाधान देती है । मिथ्यादर्शन, निषेधात्मक सोच, आग्रही पकड़, आवेश, क्रूरता, आसक्ति, असंयम आदि शाश्वती समस्याएं हैं जबकि अनास्था, अन्धानुकरण, भ्रूणहत्या, आतंकवाद, संग्रह की मनोवृत्ति, सुखवाद, सुविधावाद, श्रम की उपेक्षा, प्रसाधन सामग्री की स्पर्धा आदि युगीन समस्याएं हैं। आचार्य श्री ने नव सूत्रों के माध्यम से सब प्रश्नों का सटीक उत्तर दिया है । आपने इसे लता की उपमा से उपमित किया है। इसकी तुलना अक्षीणमहानस लब्धि से की जा सकती है । यह लब्धि जिसके पास होती है वह थोड़े से खाद्य पदार्थों से हजारों व्यक्तियों को भोजन करा देता है ।
I
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - सितम्बर, 2000 AM
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
83
www.jainelibrary.org