Book Title: Tulsi Prajna 2000 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 74
________________ 1966 मे स्वीकृति प्रदान की गई हैं) द्वारा स्वीकृत किया गया है इस अधिकार के संदर्भ में दो मुद्दे उभरकर सामने आते रहे हैं 1. कौन व्यक्ति आत्मनिर्णय के अधिकार के अधिकारी हैं? 2. इस अधिकार की विषयवस्तु क्या है? पहले मुद्दे के सम्बन्ध में धारा -1 के अनुसार सभी लोगों को यह अधिकार प्राप्त है पर एक अन्तर अवश्य है कि कुछ राष्ट्रों के लोग इस अधिकार का उपयोग पहले से कर रहे हैं जबकि कुछ राष्ट्रों के लोगों को यह अधिकार अभी भी मिलना है। बहुराष्ट्रीय राज्य में एक देश आत्मनिर्णय का अधिकार रखता है बशर्ते वह उस राज्य में एक अलग राष्ट्र के रूप में संवैधानिक पहचान रखता हो। वे लोग जिन्होंने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की हो या जिनकी स्वतंत्र राजनैतिक अस्मिता हो, लेकिन उन्हें बिना उनकी स्वतंत्र सहमति के किसी अन्य राज्य में समाहित कर दिया गया हो तो उनका आत्मनिर्णय का अधिकार अवरूद्ध हो जाता है। इस तरह की सीमाओं पर अन्तरराष्ट्रीय कानून का ध्यान आकर्षित कर सहमति प्राप्त करना आवश्यक है। आत्मनिर्णय से सम्बन्धित दूसरा मुद्दा अधिकारों की विषयवस्तु से सम्बन्धित है। यह अब सुस्पष्ट रूप से स्थापित हो चुका है कि इस अधिकार के दो पक्ष हैं-बाह्य व आन्तरिक। बाह्य आत्मनिर्णय बाह्य (विदेशी) नियंत्रण (जैसे उपनिवेश, जातिवाद) से मुक्ति का अधिकार है जबकि आन्तरिक आत्मनिर्णय इससे भिन्न है। यह राज्य की सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक नीतियों के निर्धारण या परिवर्तन के लिए सरकार के स्वतंत्र चयन एवं परिवर्तन से सम्बन्धित अधिकार है जो सभी लोगों को प्राप्त है। धारा 1 के अनुसार लोग अपनी-अपनी राजनैतिक व्यवस्था निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र हैं, अतएव आन्तरिक आत्मनिर्णय के लिए स्वतंत्र, खुले व स्वच्छ प्रजातंत्र की आवश्यकता है। अल्पसंख्यकों के अधिकार अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का शायद सबसे कमजोर पक्ष है। संयुक्त राष्ट्र गतिविधियों का प्रारम्भ से ही यह लक्ष्य रहा है कि अल्पसंख्यकों के संरक्षण के नियम बनाये जायें। इस सन्दर्भ में इण्टरनेशनल कोवीनेंट ऑन सिविल एण्ड पोलिटिकल राइट की धारा 27 तक ही हम सीमित रहे हैं जिसमें यह कहा गया है कि 'जिन राज्यों में वंश, धर्म और भाषाई अल्पसंख्यक रहते हैं उन्हें अपनी संस्कृति, अपने धर्म और अपनी भाषा के प्रयोग से रोका नहीं जाएगा'। धारा 27 की कई प्रकार की व्याख्याएं की जाती रही हैं। कुछ विद्वान् संस्कृति में भौतिक के साथ-साथ आध्यात्मिक पक्ष का समावेश किये जाने के लिए तर्क प्रस्तुत करते हैं। उनका कहना है कि संस्कृति को बनाये रखने के लिए उन 68 AITITITIIIIIIIIIIIIILINITI OINITIV तुलसी प्रज्ञा अंक 109 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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