Book Title: Tulsi Prajna 2000 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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32. विद्यते चापरोऽशुद्धद्रव्यव्यंञ्जनपर्ययौ । अर्थीकरोति यः सोऽत्र ना गुणीति निगद्यते ॥
वही, श्लोक-46, पृ. 239 भिदाभिदाभिरत्यंतं प्रतीतेरपलापतः। पूर्ववन्नैगमाभासौ प्रत्येतव्यौ तयोरपि ॥
-वही, श्लोक-47, पृ. 239. 33. नैगमस्त्रेधाभूतभाविवर्तमानकाल भेदात्। -आलापपद्धति, सूत्र-64, पृ. 13
-संपादक - ब्र. धर्मचन्द शास्त्री, प्रकाशक-भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत् परिषद्, प्रथम
संस्करण-1990 34. माइल्लधवल विरचित ‘णयचक्को', सम्पादक-पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, गाथा-205 से 207,
पृ. 111-112, प्रका. भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, द्वितीय संस्करण-1999.
-कनिष्ठ शोध अध्येता जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग जैन विश्व भारती संस्थान, (मान्य विश्वविद्यालय)
लाडनूं-341 306 (राज.)
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ANILI
ONV तुलसी प्रज्ञा अंक 109
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