Book Title: Tulsi Prajna 2000 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 41
________________ चंपयलता-इसका उल्लेख लता वर्ग में है किन्तु यह सुंगधित पुष्पों का क्षुप है। एक वर्ग का दूसरे वर्ग में संक्रमणपटोला-गुच्छ वर्ग और वल्ली वर्ग दोना में है। अज्जुण-तृण वनस्पति और बहुबीजक दोनों में उल्लिखित है। सरिसव-हरित वनस्पति और औषधि वर्ग दोनों में है। वत्थुल-हरित वनस्पति और गुल्म दोनो में है। उदए-पर्वग वनस्पति और जलरुह दोनो में है। जासुवण, जासुमण-लतावर्ग और गुच्छ वर्ग दोनों में है। दव्वी, दव्वहलिया-दोनों एक ही वनस्पति के नाम हैं। जैन आगम वनस्पति कोश में इन वनस्पतियों का जो स्वरूप बताया गया है उससे ऐसा लगता है कि बारह भेद वनस्पति की एक अवस्था को लेकर हैं। दूसरी अवस्था के आधार पर दूसरे वर्ग में भी इनका समावेश हो सकता है। निघंटु कोश-धन्वन्तरि निघंटु, भाव प्रकाश निघंटु, शालिग्राम निघंटु आदि ग्रन्थों में लता और वल्ली दोनों का एक ही वर्ग है। वलय वनस्पति का तृण वनस्पति में ही समावेश किया गया है। तालाद्याः जातयः सर्वा क्रमुक केतकी तथा। खजूरी नारिकेलाद्यास्तृणवृक्षा प्रकीर्तिताः ॥ (राजनिघंटु श्लोक ४७ पृ. २४) निघंटु आदर्श उत्तरार्ध में यव, कंगु चावल आदि औषधि वर्ग का भी तृण वनस्पति में समावेश किया गया है। ठाणं सूत्र में वनस्पति के चार प्रकार हैंचउव्विहा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा–अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया। अग्गबीया - जिसके अग्रभाग में बीज होते हैं जैसे व्रीहि आदि। मूलबीया – जिसके मूल ही बीज है जैसे उत्पल कंद आदि। पोरबीया-जिसका पर्व ही बीज है जैसे इक्षु आदि। खंधबीया-जिसका स्कन्ध बीज है जैसे सल्लकी आदि। इस सूत्र के आधार पर भी तृण वनस्पति में अनेक वनस्पतियों के वर्ग का समावेश हो सकता है। साधारण वनस्पति के वृक्ष, लता आदि भेद प्रत्येक वनस्पति के भेदों की यात्रा करने के बाद जब साधारण वनस्पति के शब्दों की, उसके स्वरूप की यात्रा करते हैं तब एक प्रश्न उभर कर सामने आता है कि प्रत्येक तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 NAWAI INITINITI ATIV 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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