Book Title: Tulsi Prajna 2000 01 Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ सम्पादकीय राष्ट्र के प्रति जैन समाज का योगदान 4 मुमुक्षु शान्ता जैन मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जहां समाज है वहां दो का अस्तित्व है। सम्पूर्ण जैन दर्शन के प्रतिपादन में अस्तित्व और अस्मिता की दृष्टि से व्यक्ति अकेला और स्वतंत्र है। परन्तु जीवन शैली के सम्पादन में उसे दूसरे की अपेक्षा अनिवार्य है, इसलिए भगवान् महावीर ने सूत्र दिया-'परस्परोपग्रहों जीवानाम्'। व्यक्ति समाज से जुड़ा है और समाज राष्ट्र से। इसलिए राष्ट्र के लिए हम उतने ही मूल्यवान हैं जितने हमारे लिए राष्ट्र। अत: राष्ट्र के प्रति हमारा योगदान क्या है और भविष्य की संभावनाओं को हम कहां तक उजागर कर सकते हैं, यह आज का विमर्शणीय विषय है। इतिहास बताता है कि राष्ट्रीयता से जुड़े जैन समाज के योगदानों की एक लम्बी और समृद्ध परम्परा रही है। अनेक ऐसे प्रसंग, घटनाएं साक्षी हैं कि जैन समाज ने अपने संस्कार और संस्कृति के जीवन्त उदाहरणों से राष्ट्रीय सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध और गौरवान्वित किया है। राष्ट्र हित में त्याग, बलिदान और संयम की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह गौरव की बात है कि जैनधर्म के पास सम्यग् दर्शन, चिन्तन, प्रयोग और पद्धतियां हैं। न केवल राष्ट्रीय चेतना का योगक्षेम है बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण भी है और समस्याओं का सटीक समाधान भी। भारत अध्यात्म प्रधान संस्कृति का संवाहक रहा है। इसकी उदारता और सहिष्णुता तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 N RITITITINITIVINITITINY 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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