Book Title: Tulsi Prajna 1991 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 4
________________ सपादकीय मुरियकालवोछिने चोयठ अंगे मई-जून, १९६१ के अंक की इन पंक्तियों में खारवेल-प्रशस्ति में 'मौर्यकाल१६५' लिखे होने की बात दोहराई गई थी किन्तु उसके बाद शिलालेख की छाप और ट्रांसक्रिप्ट वगैरह को पुनः यत्नपूर्वक अध्ययन से यह सूत्र समझ पड़ा कि लेख खोदने वाले सिलावटों ने प्रशस्ति के प्रत्येक वाक्य को, एक दूसरे वाक्य से पृथक-पृथक रखा है और राजा खारवेल के १३ शासन वर्षों के विवरण को भी अलग-अलग पैरा बनाकर उत्कीर्ण किया है। ___ इस सूत्र से खारवेल-प्रशस्ति के मूलपाठ को पुनः संशोधित करने पर १५ वीं ओळी में एक अलग वाक्य बना-'मुरियकाल वोछिने च चोयठ अंगे सातिकं तिरियं उपादयति ।' गत अंक (जुलाई-सितम्बर, १९६१) में यह पाठ प्रकाशित किया गया और 'चोयठ अंगे' को जैनागमों की संख्या का वाचक होने की संभावना प्रकट की गई। 'चोयठ अंगे' पद में चोयठ-पद संख्या वाचक ही हो सकता है किंतु 'अंकानां वामतो गतिः'-अनुसार यह ८४ का द्योतक है; ६४ है अथवा ४+८ का योग १२ या ८४ ४ का गुणन--३२ है ? अधिक संभावना यही है कि दोनों अंकों का योग ही यहां अभिप्रेत होगा! तत्कालीन शिलालेखों में संख्या-अंकों की गणना इसी तरह लिखी मिलती है। जैनागमों की परंपरागत संख्या भी १२ ही बताई जाती है। समवायांग के प्रकीर्णक समवाय में सूत्र है-"दुवालसंगे गणिपिडगे।" पालि-साहित्य में बुद्ध वचनों को भी 'द्वादशांगमिदं वचः' कहा गया है। दूसरा प्रश्न है ? अंग क्या हैं ? वैदिक-साहित्य में वेदांगों की संख्या छह For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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