Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 258
________________ ॥त्रण भाष्यनी मूळ गाथाओ॥ artistattattattitttt.tattattarairitt ॥अथ चैत्यवंदनभाष्य मूळ॥ కశారాం నానా వానా वंदित्तु वंदणिजे, सवे चिइवंदणाइ-सुवियारं । बहुवित्ति-भास-चुण्णी-सुयाणुसारेण वुच्छामि ॥१॥ दहतिग अहिंगमपणगं, दुदिसि तिहुग्गह तिहा उ वंदणया। पणिवाय नमुक्कारा, वन्ना सोलसय सीयाला ॥२॥ इगसीइसयं तु पया, सगनउई संपया उ पण दंडा। बार अहिगार चउर्व-दणिज्ज सरणिज्ज चउहजिणा॥३॥ चउरो थुई निमित्तद्व, वार हेऊ अ सोल आगारा । गुणवीस दोस उस्सग्गमाण थुत्तं च सग वेला ॥४॥ दस आसायणचाओ, सव्वे चिइवंदणाइ ठाणाई। 'चउवीस दुवारेहि, दुसहस्सा हुंति चउसयरा ॥ ५॥ तिन्नि निसीही तिन्नि उ, पयाहिणा तिन्नि चेव य पणामा तिविहा पूया य तहा, अवत्थतियभावणं चेव ॥६॥ १४ २७

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