Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 274
________________ ___२६९ [प्रत्याख्यान भाष्य] विगइगया संसट्ठा, उत्तमदव्वा य निव्विगइयंमि। कारणजायं मुत्तुं, कप्पंति न भुत्तुं जं वुत्तं ॥३९॥ विगई विगईभीओ, विगइगयं जो उ भुंजए साह। विगई विगइसहावा, विगई विगई बला नेइ ॥ ४० ॥ कुत्तिय-मच्छिय-भामर,महुँ तिहा कट्ठ पिट्ठ मज दुहा। जल-थल-खगमंस तिहा,घयव्व मक्खण चउ अभक्खा४१ मर्ण-वयण-कार्य-मणवेय-मणतणु-वयर्तणु-तिजोगि सग सत्त । कर कार णुमई हुँ तिर्जुइ,तिकालि सीयालभंगसयं ॥४२॥ एयं च उत्तकाले, सयं च मण वय तणूहिं पालणियं । जाणग जाणगपासत्ति भंगचउगे तिसु अणुन्ना ॥४३॥ फासिय पालिय सोहिय, तीरिय किटिय अराहिय छ सुद्धं। पञ्चक्खाणं फासिय. विहिणोचियकालि जं पत्तं ॥४॥ पालिय पुणपुण सरियं, सोहिय गुरुदत्तसेसभोयणओ । तीरिय समहियकाला, किट्टिय भोयणसमयसरणा ॥४५॥ इय पडियरियं आरा-हियं तु अहवा छ सुद्धि सदहणा। जाणण विणयऽणुभासण, अणुपालण भावसुद्धित्ति ॥४६॥ पच्चक्खाणस्स फलं, इह परलोए य होइ दुविहं तु । इहलोए धम्मिलाई, दामनगमाइ परलोए॥४७॥

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