Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 273
________________ २६८ [प्रत्याख्यान भाष्य] पण चउ चउ चउ दुदुविह,छ भक्ख दुद्धाइ विगइ इगवीसं तिदुति चउविह अभक्खा,चउ महुमाई विगइ बार॥२९॥ खीर घय दहिय तिल्लं, गुल पकन्न छ भक्खविगईओ। गो-महिसि-उटि-अय-एलगाण पण दुद्ध अह चउरो॥३०॥ घय दहिया उट्टिविणा,तिल सरिसव अयसि लट्टतिल्ल चऊ दवगुड पिंडगुडा दो, पक्कन्नं तिल्ल घयतलियं ॥३१॥ पयसाडि-खीर-पेया-ऽवलेहि-दुद्धहि दुद्धविगइगया। दक्ख बहु अप्पतंदुल, तच्चुन्नंबिलसहियदुध्धे ॥३२॥ निभंजण-वीसंदण-पक्कोसहितरिय-किट्टि-पक्कघयं । दहिए करंब-सिहरिणि-सलवणदहि-घोल-घोलवडा॥३३॥ तिलकुट्टी निभंजण,पकतिल पक्कुसहितरिय तिल्लमली। सक्कर गुलवाणय पाय खंड अद्धकढि इक्खुरसो॥३४॥ पूरिय तवपूआ बी-अपूअ तन्नेह तुरियघाणाई । गुलहाणी जललप्पसि, अपंचमो पुत्तिकयपूओ ॥३५॥ दुध्ध दही चउरंगुल, दवगुल घयतिल्ल एग भत्वरि । पिंडगुडमक्खणाणं, अद्दामलयं च संसटुं ॥३६॥ दव्वहया विगई विगइ-गय पुणो तेण तं हयं दव्वं । उध्धरिए तत्तंमि य, उकिट्ठदवं इमं चन्ने ॥ ३७॥ तिलसक्कुलि वरसोला-रायणंबाइ दक्खवाणाई। डोली तिल्लाई इय, सरसुत्तमदब्व लेवकडा ॥३८॥

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