Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
View full book text
________________
[प्रत्याख्यान भाष्य]
२६७
अन्न सहस्सागारि अ,आउंटण गुरु अ पारिमहसव्व । एग-बियासणि अट्ठ उ, सग इगठाणे अउंट विणा॥१९॥ अन्न स्सह लेवा गिह, उक्खित्त पडुच्च पारि मह सव्व। विगई निविगए नव, पडुच्चविणु अंबिले अट्ठ॥२०॥ अन्न सह पारि मह स-व पंच खम(व)णे छ पाणिलेवाई। चउ चरिमंगुट्ठाई-भिग्गहि अन्न सह मह सव्व ॥२१॥ दुद्ध-महु-मज्ज-तिल्लं, चउरो दवविगइ चउर पिंडदवा। घय-गुल-दहियं-पिसियं, मक्खण-पक्कन्न दो पिंडा॥२२॥ पोरिसि-सह-अवलं, दुभत्त-निव्विगइ पोरिसाइ समा। अंगुट्ठ-मुट्ठि-गंठी-सचित्तदव्वाइभिग्गहियं ॥ २३ ॥ विस्सरण मणाभोगो, सहसागारो सयं मुहपवेसो। पच्छन्नकाल मेहाई, दिसिविवज्जासु दिसिमोहो ॥२४॥ साहुवयण उग्घाडा-पोरिसि तणुसुत्थया समाहित्ति । संघाइकज्ज महतर, गिहत्थबन्दाइ सागारी ॥२५॥ आउंटणमंगाणं, गुरुपाहुणसाहु गुरुअभुट्ठाणं । परिठावण विहिगहिए, जईण पावरणि कडिपट्टो॥२६॥ खरडिय लूहिय डोवा-इ लेव संसह डुच्च मंडाई। उरिकत्त पिंडविगईणं मक्खियं अंगुलीहिं मणा ॥२७॥ लेवाडं आयामाई इयर सोवीरमच्छमुसिणजलं । धोयण बहुल ससित्थं, उस्सेइम इयर सित्थविणा॥२८॥

Page Navigation
1 ... 270 271 272 273 274 275 276