Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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॥अथ पञ्चक्खाणभाष्य मूळ॥ दस पच्चखाण चउविहि, आहार दुवीसगार अदुरुत्ता। दसविगइ तीस विगई-गय दुहभंगा छसुद्धि फलं ॥१॥ अणागय-मइकंतं, कोडीसहियं नियंटि अणगारं । सागार निरवसेसं, परिमाणकडं सके अद्धा ॥ २ ॥ नवकारसहिय पोरिसि, पुरिमळे-गासणे-गठाणे य। आयंबिल अभंतढे, चरिमे अ अभिग्गहे विगई ॥३॥ उग्गए सूरे अ नमो, पोरिसि पञ्चक्ख उग्गए सूरे । सूरे उग्गए पुरिमं, अभतढे पञ्चखाइ त्ति ॥ ४॥ भणइ गुरू सांसो पुण, पच्चरकामि त्ति एव वोसिरइ। उवओगित्थ पमाणं न पमाणं वंजणच्छलणा ॥ ५॥ पढमे ठाणे तेरस, बीए तिनि उतिगाइ (य) तइयमि पाणस्स चउत्थंमी, देसवगासाइ पंचमए॥६॥ नमु पोरिसि सद्बा पुरि-मवट्ठ अंगुट्ठमाइ अड तेर । निवि विगइंबिल तिय तिय,दुइगासण एगठाणाई।।७।। पढममि चउत्थाई, तेरस बीयंमि तइय पाणस्स। देसवगासं तुरिए, चरिमे जहसंभवं नेयं ॥ ८॥

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