Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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२६४ [गुरुवंदन भाष्य ] इरिया कुसुमिणुसग्गो, चिइवंदण पुत्ति बंदणा-लोयं। वंदण खामण वंदण, संवर चउछोभ दुसज्झाओ ३८ इरिया-चिइवंदण-पुत्ति-वंदणं-चरिम-वंदणा-लोयं वंदण खामण चउछोभ, दिवसुस्तग्गो दुसज्झाओ ३९ एयं किइकम्मविहि, जुजंता चरणकरणमाउत्ता। साहू खवंति कम्मं, अणेगभवसंचिअमणंतं ॥ ४० ॥ अप्पमइभव्वबोह-त्थ भासियं विवरियं च जमिह मए। तं सोहंतु गियत्था, अणभिनिवेसी अमच्छरिणो ॥४१॥
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-समाप्तम्

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