Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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[चैत्यवंदन भाष्य] अडसटि अट्ठवीसा, नवनउयसयं च दुसयसैगनउआ। दोगुणतीस दुसट्ठा, दुसोले अडनउँअसय दुवैन्नसयं२६ इय नवकार-खमासमण-इरिय-सकत्थयाइ दंडेसु । पणिहाणेसु अ अदुरू-त्तवन्न सोलसयसीयाला ॥२७॥ नव बत्तीस तितीसा, तिचत्त अडवीस सोल वसि पया मंगल-इरिया-सकत्थयाइसुं एगसीइसयं ॥ २८ ॥ अट्ठट्ठनवह य अट्ठवीस सोलस य वीस वीसामा । कमसो मंगल इरिया-सक्कथयाईसु सगनउई ॥ २९ ॥ वन्नट्ठसट्ठि नवपय, नवकारे अट्ठ संपया तत्थ । सगसंपय पयतुल्ला, सतरक्खर अट्ठमी दुपया ॥३०॥ _ "नवक्खरट्ठमि दुपय छट्ठीं” ॥ इत्यन्ये ॥ पणिवाय अक्खराइं, अट्ठावीसं तहा य इरियाए । नवनउयमक्खरसयं, दुतीसपय संपया अठ्ठ॥ ३१ ॥ दुग दुगग चउ इग पण,इगार छग इरिय संपयाइपया। इच्छा इरि गम पाणा, जे मे एगिदि अभि तस्स॥३२॥ अब्भुवगमो निमित्तं, ओहे-यर हेउ संगहे पंच । जीव-विराहण-पडिकुमण भेयओ तिन्नि चूलाए ॥३३॥ दुति चउ पण पण पण दुचउति पय सकथयसंपयाइपया नमु आइग पुरिसो लोगु अभय धम्म प्प जिण सव्व।।३४।। थोअव्वसंपया ओह इयरहेऊवओग तछेऊ। सविसेसुवओग सरूवहेउ नियसमफलय मुरके ॥३५॥

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