Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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[चैत्यवंदन भाष्य ] मुत्तासुत्ती मुद्दा, जत्थ समा दोवि गभिआ हत्था । . ते पुण निलाडदेसे, लग्गा अन्ने अलग्गत्ति ॥ १७ ॥ पंचंगो पणिवाओ, थय (थुइ) पाढो होइ जोगमुद्दाए । वंदण जिणमुद्दाए, पणिहाणं मुत्तसुत्तीए ॥ १८॥ .. पणिहाणतियं चेइअ-मुणिवंदण-पत्थणासरूवं वा। मण-वय-काएगत्तं, सेसतिगत्यो य पयडुत्ति ॥ १९॥ सच्चित्तदव्वमुज्झण-मच्चित्तमणुज्झणं-मणेगत्तं । इगसाडि उत्तरासं-गु अंजली सिरसि जिणदिद्वे
॥२०॥ इय पंचविहाभिगमो, अहवा मुच्चंति रायचिन्हाई। खग्गं छत्तोवाणह, मउडं चमरे अ पंचमए ॥ २१ ॥ वंदति जिणे दाहिण-दिसिट्ठिया पुरुस वामदिसि
नारी। नवकर जहन्न सट्टिकर, जिट्ट मझुग्गहो सेसो ॥२२॥ नमुकारेण जहन्ना, चिइवंदण मज्झ दंडथुइजुअला । पणदंड थुइचउक्कग-थयपणिहाणेहिं उक्कोसा ॥ २३ ॥ अन्ने बिति इगेणं, सक्कथएणं जहन्नवंदणया । तदुगतिगेण मज्झा, उक्कोसा चउहि पंचहि वा ॥२४॥ पणिवाओ पंचंगो, दो जाणू करदुगुत्तमंगं च । सुमहत्थ नमुक्कारा, इग दुग तिग जाव अट्ठसयं ॥२५॥

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