Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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| ॥अथ गुरुवंदनभाष्य मूळ॥
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गुरुवंदणमह तिविहं, तं फिट्टा छोभ बारसावत्तं। सिरनमणाइसु पढमं, पुन्नखमासमणदुगि बीअं ॥१॥ जह दूओ रायाणं, नमिङ कज्जं निवेइउं पच्छा। वीसज्जिओवि वंदिय, गच्छइ एमेव इत्थ दुगं ॥२॥ आयारस्स उ मूलं, विणओ सो गुणवओ य पडिवत्ती। सा य विहिवंदणाओ, विही इमो बारसावत्ते ॥३॥ तइयं तु छंदणदुंगे, तत्थ मिहो आइमं सयलसंघे। बीयं तु दंसणीण य, पयट्ठियाणं च तइयं तु ॥४॥ . वंदण चिइ किइकम्मं, प्रयाकम्मं च विणयकम्मं च । कायव्वं कस्स व केण वावि काहे व कइखुत्तो ॥५॥ कइओणयं कइसिरं, कइहि व आवस्सएहि परिसुद्धं कइदोसविप्पमुक्कं, किइकम्मं कीस कीरइ वा ॥६॥ पणनाम पणाहरणा, अजुग्गपण जुग्गपण चउ अदाया। चउदाय पण निसेहा, चउ अणिसेह-टुकारणया ॥७॥ आवस्तय मुहणंतय, तणुपेहपणीस दोसवत्तीसा। छगुण गुरुठवण दुग्गह, दुछवसिक्खर गुरुपणीसा ॥८॥
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