Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

View full book text
Previous | Next

Page 266
________________ [गुरुवंदन भाष्य ] . २६१ ૧૯ ૨૦ ૨૧ ૨૨ , पय अडवन्न छठाणा, छग्गुरुवयणा असायणतितीसं। दुविही दुवीसदारेहिं चउसयाबाणउइ ठाणा ॥९॥ वंदणयं चिइकम्मं, किइकम्मं पूअकम्म विणयकम्म। गुरुवंदणपणनामा, दव्वे भावे दुहोहेण (दुहाहरणा)॥१०॥ सीयलय खुड्डए वीरकन्ह सेवगदु पालए संबे। । पंचे ए दि,ता. किडकम्मे दव्वभावेहिं ॥११॥ पासत्थो ओसन्नो, कुसील संसत्तओ अहाच्छंदो। .. दुग-दुग-ति-दु-णेगविहा, अवंदणिज्जा जिणमयमि॥१२॥ आयरिय उवज्झाए, पवत्ति थेरे तहेव रायणिए। किइकम्म निज्जरट्ठा, कायव्वमिमेसि पंचण्हं ॥ १३ ॥ माय-पिय-जिट्ठभाया,-ओमावि तहेव सव्वरायणिए । किइकम्म न कारिज्जा,चउ समणाई कुणति पुणो॥१४॥ विक्खित्त पराहुत्ते, अ पमत्ते मा कयाइ वंदिज्जा। आहारं नीहारं, कुणमाणे काउकामे य ॥ १५ ॥ पसंते आसणत्थे अ, उवसंते उवहिए। अणुन्नवित्तु मेहावी, किइकम्मं पउंजइ ॥ १६ ॥ पडिकमणे सज्झाए, काउस्सग्गा वराह-पाहुणए। . . आलोयण-संवरणे, उत्तम(अ)हे य-वंदणयं ॥ १७ ॥ दोऽवणयमहाजायं, आवत्ता बार चउसिर तिगुत्तं । दुपवेसिगनिक्खमणं, पणवीसावसय किइकम्मे ॥१८॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276