Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 262
________________ [चैत्यवंदन भाष्य ] दोसगनउया वन्ना, नव संपय पय तितीस सकाए । चेइयथयसंपय, तिचत्तपय वन्न दुसयगुंणतीसा॥३६॥ दछ सग नवतिय छ चउ छप्पय चिइसंपया पया पढमा। अरिहं वंदण सद्धा, अन्न सुहुम एव जा ताव ॥३७॥ अब्भुवगमो निमित्तं, हेऊ इग बहुवयंत आगारा। आगंतुग आगारा, उस्सग्गावहि सरूवट्ठ ॥३८॥ नामथयाइसु संपय, पयसम अडवीस सोल वीस कमा। अदुरुत्तवन्न दोसट्ठ-दुसयसोल-ट्ठनउअसंयं ॥ ३९ ॥ पणिहाणि दुवन्नसयं, कमेसु सग-ति-चउवीस-तित्तीसा। गुणतीस अट्ठवीसा, चउतीसि-गतीस बार गुरुवन्ना।।४०॥ पण दंडा सक्कत्थय, चेझ्य नाम सुअ सिद्धथय इत्थ । दो इग दो दो पंच य, अहिगारा बारस कमेण ॥४॥ नमुजेय अअरिहं लोग सव्व पुक्ख तम सिद्ध जो देवा। उन्जि चत्ता वेयावच्चग अहिगारपढमपया ॥४॥ पढमहिगारे वंदे, भावजिणे बीयअंमि दव्वजिणे । इगचेइयठवणजिणे, तइय चउत्थमि नामजिणे ॥४३॥ तिहुअणठवणजिणे पुण, पंचमए विहरमाणजिण छठे। सत्तमए सुअनाणं, अट्ठमए सव्वसिद्धथुई ॥४४॥ तित्थाहिव वीरथई, नवमे दसमे य उजयंत थुई। अट्ठावयाइ इगदासि, सुदिट्ठिसुरसमरणा चरिमे ॥४५॥

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