Book Title: Tran Bhashya Bhavarth ahit
Author(s): Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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२५४
[चैत्यवंदन भाष्य] तिदिसिनिरिक्षण विरई, पयभूमिपमज्जणं च तिक्खुत्तो वन्नाइतियं मुद्दा-तियं च तिविहं च पणिहाणं ॥७॥ घर-जिणहर-जिणपूआ-वावारच्चायओ निसीहितिगं । अग्गबारे मज्झे, तइया चिइवंदणासमए ॥८॥ अंजलिबंधो अद्धो-णओ अ पंचंगओ अ तिपणामा सव्वस्थ वा तिवारं, सिराइनमणे पणामतियं ॥९॥ अंग--ग्ग-भार भेया, पुप्फाहारत्थुईहिं पूयतिगं। पंचुवयारा अट्ठो-वयार सव्वोवयारा वा ॥ १० ॥ भाविज्ज अवस्थतियं, पिंडत्थ पयत्य रूवरहिअत्तं छउमत्थ केवलितं, सिद्धत्तं चेव तस्सत्थो॥११॥ न्हवणच्चगेहिं छउमत्थ-वत्थपडिहारगेहिं केवलियं । पलियंकुस्सग्गेहि अ, जिणस्स भाविज्ज सिद्धत्तं ॥१२॥ उलाहोतिरिआणं, तिदिसाण निरिक्खणं चइज्जहवा । पच्छिम--दाहिण--वामाण जिणमुहन्नथदिट्ठिजुओ॥
॥ १३ ॥ वन्नतियं वन्नत्था-लंबणमालंबणं तु पडिमाई । जोग-जिण-मुत्तसुत्ती-मुद्दाभेएण मुद्दतियं ॥ १४ ॥ अन्नुन्नंतरि अंगुलि-कोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं । पिट्टोवरि कुप्परसं-ठिएहिं तह जोगमुद्दत्ति ॥ १५ ॥ चत्तारि अंगुलाई, पुरओ ऊणाइं जत्थ पच्छिमओ। पायाणं उस्सग्गो, एसा पुण होइ जिणमुद्दा ॥ १६ ॥

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